भारत में मूंग (Moong) ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौषम की कम समय में पकने वाली अक मुख्य दलहनी फसल है| मूंग (Moong) का उपयोग मुख्य रूप से आहार में किया जाता है, जिसमें 24 से 26 % प्रोटीन, 55 से 60 % कार्बोहाइड्रेट और 1.3% वसा होती है| दलहनी फसल होने के कारण इसके तने में नाइट्रोजन की गाठें पाई जाती है| जिसे इस फसल के खेत को 35 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है| ग्रीष्म मूंग की खेती चना, मटर, गेहूं, सरसों, आलू, जौ, अलसी आदि फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जा सकती है|
पंजाब, हरियाणा उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान प्रमुख ग्रीष्म मूंग उत्पादक राज्य हैं| धान-गेहूं फसल चक्र वाले क्षेत्रों में जायद मूंग की खेती द्वारा मिटटी उर्वरता को उच्च स्तर पर बनाये रखा जा सकता है| लेकिन अच्छी तकनीकी न होने के कारण जितने क्षेत्र में इसकी फसल उगाई जाती है उसके अनुपात में पैदावार अच्छी नही मिलती है|
कृषक भाई उन्नत प्रजातियो एवं उत्पादन की उन्नत तकनीक को अपनाकर पैदावार को 8-10 क्विंटल प्रति हैक्टयर तक प्राप्त कर सकते है। इस लेख में मूंग की उन्नत खेती कैसे करें का उल्लेख किया गया है
जलवायु- मूंग की फसल हर प्रकार के मौसम में उगाई जा सकती है| उत्तर भारत में इसे ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में उगाते हैं| दक्षिण भारत में इसे रबी में भी उगाते हैं| ऐसे क्षेत्र जहां 60 से 75 सेंटीमीटर वर्षा होती है, मूंग के लिए उपयुक्त होते हैं| फली बनते और पकते समय वर्षा होने से दाने सड़ जाते हैं एवं काफी हानि होती है| उत्तरी भारत में मूंग को वसंत ऋतु (जायद) में भी उगाते हैं| अच्छे अंकुरण और समुचित बढ़वार हेतु क्रमशः 25 डिग्री तथा 20 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है|
भूमि- दोमट भूमि सबसे अधिक उपयुक्त होती है| इसकी खेती मटियार एवं बलुई दोमट में भी की जा सकती है, जिनका पी एच 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम हैं| खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिये|
खेत की तैयारी- खरीफ की फसल के लिए एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए और वर्षा प्रारंभ होते ही 2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरान्त खेत में पाटा चलाकर समतल करें| दीमक से बचाव के लिये क्लोरोपायरीफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिये| ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिये रबी फसलों के कटने के तुरन्त बाद खेत की तुरन्त जुताई कर 4 से 5 दिन छोड़ कर पलेवा करना चाहिए| पलेवा के बाद 2 से 3 जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल और भुरभुरा बनावे| इससे उसमें नमी संरक्षित हो जाती है तथा बीजों से अच्छा अंकुरण मिलता हैं|
बुआई समय- 1. खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के द्वितीय पखवाड़े से जुलाई के प्रथम पखवाड़े के मध्य है| 2. बसंत कालीन मूंग को मार्च के प्रथम पखवाड़े में और ग्रीष्मकालीन मूंग को 15 मार्च से 15 अप्रैल तक बोनी कर देना चाहिये| बोनी में विलम्ब होने पर फूल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं या बनती ही नहीं है, इससे इसकी पैदावार प्रभावित होती है|
उन्नत किस्में - ( किसान भाई अपने एरिया के अनुसार चलित बीज का भी उपयोग कर सकते है )
टाइप 44- इस मूंग की किस्म का पौधा बौना होता है| तना अर्धविस्तारी तथा पत्तियां गहरे हरे रंग की होती हैं| फूल पीले, बीज गहरे हरे रंग के एवं मध्यम आकार के होते हैं| फसल पकने में 60 से 70 दिन का समय लेती है| यह सभी मौसमों में उगाई जा सकती है|
मूंग एस 8- पौधा मध्यम ऊंचाई का तथा सीधे बढ़ने वाला होता है| तना विस्तारी, फूल हल्के पीले रंग के, फलियां 6 से 8 सेंटीमीटर लम्बी, चिकनी व काली होती हैं| एक फली में 10 से 12 तक हरे चमकदार बीज, फसल तैयार होने में 75 से 80 दिन लेती है| इसमें पीले मोजैक रोग का प्रकोप कम होता है| यह खरीफ ऋतु में उगाई जा सकती है|
पूसा विशाल- उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र हेतु बसंत और ग्रीष्म मौसम में बुवाई के लिए उपयुक्त, यह विषाणु जनित पीली चित्ती रोग की प्रतिरोधी, एक साथ पकने वाली है जो बसंत के मौसम में 65 से 70 दिनों में और ग्रीष्म में 60 से 65 दिनों में पककर तैयार हो जाती है| पैदावार 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पूसा रतना- मुंग की यह किस्म उत्तर क्षेत्र में खरीफ मौसम में बुवाई के लिए उपयुक्त, एक साथ पकने वाली, 65 से 70 दिनों में पककर तैयार, विषाणु जनित पीली चित्ती रोग की सहिष्णु है| पैदावार 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पूसा 0672- यह किस्म उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र, खरीफ मौसम में बुवाई के लिए उपयुक्त, मूंग के विषाणु जनित पीली चित्ती रोग व अन्य रोगों की सहिष्णु, दाना चमकदार हरा, आकर्षक और मध्यम आकार का होता है| पैदावार 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पूसा 9531- उत्तर पश्चिम क्षेत्र में खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त यह, 60 से 65 दिनों में पककर तैयार, विषाणु जनित पीली चित्ती रोग एवं कीटों की सहिष्णु, औसत पैदावार 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
मूग जवाहर 45- इसका पौधा लम्बा व सीधा, पत्तियां हरी, फूल पीले, बीज चमकदार व हरे रंग के, पकने का समय 80 दिन, खरीफ के लिए उपयुक्त है|
पी एस 16- पत्तियां पीलापन लिए हुए हरे रंग की, फूल पीले, बीज चमकदार हरे रंग के, तैयार होने से 60 से 70 दिन का समय लगता है| यह खरीफ और ग्रीष्म, दोनों ऋतुओं के लिए उपयुक्त है|
पी एस 10 (कांति)- इसका पौधा भी सीधा, फूल पीले बड़े आकार के धुंधले, फसल 75 दिन में तैयार होती है| इस किस्म कीं फलियां एक साथ पकती हैं और खरीफ के लिए उपयुक्त है|
मूंग पूसा बैसाखी- यह किस्म टाइप 44 के चयन से निकाली गई है| पौधा बौना झाड़ीनुमा, पत्तियां हरी, तने में हल्के गुलाबी रंग के धब्बे, फूल भूरा रंग लिए हुए क्रीमी रंग के, बीज हरे रंग के मध्यम आकार के, फसल 60 से 70 दिन में तैयार हो जाती है| सभी फलियां लगभग एक साथ पकती हैं और यह ग्रीष्म ऋतु के लिए अधिक उपयुक्त है|
पंत मूंग 1- इसका पौधा सीधा बढ़ने वाला गहरे हरे रंग का, बीज हरे रंग के मध्यम आकार के, पीला मोजैक विषाणु और सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती रोग के लिए काफी हद तक प्रतिरोधी, खरीफ में 70 से 75 एवं जायद में 65 से 70 दिन लेती है|
पंत मुंग 2- इसका पौधा मध्यम ऊंचाई का, पकने के लिए 60 से 65 दिनों की आवश्यकता, खरीफ में उगाना उपयुक्त, यह 65 से 70 दिन लेती है| यह पीला मोजैक विषाणु रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है|
पंत मूंग 3- इसके पौधे सीधे बढ़ने वाले, खरीफ में उगाने से अधिक लाभ मिलता है| बीज चमकीले एवं मध्यम आकार के, 65 से 70 दिन में पकती है| यह बहुरोग प्रतिरोधी प्रजाति है|
पंत मूंग 4- इसका पौधा मध्यम ऊंचाई का, मूंग और उड़द दोनों के संयोग से विकसित की गई है| बीज चमकीले हरे और मध्यम आकार के, बहुरोग प्रतिरोधी, पकने की अवधि 65 से 70 दिन है| यह उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी क्षेत्रों में खरीफ मौसम के लिए अनुमोदित की गई है|
पंत मूंग 5- यह जायद मौसम के लिए उपयुक्त है| इसके दाने चमकीले और बड़े आकार, 1000 दानों का भार 50 से 55 ग्राम, फलियां गुच्छों में लगती हैं| यह उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए अनुमोदित, औसत उपज 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
बीज की मात्रा- खरीफ में कतार विधि से बुआई हेतु मूंग 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है| बसंत या ग्रीष्मकालीन बुआई हेतु 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता पड़ती है| गन्ने के साथ सहफसली खेती के लिए मूंग की बीज दर 8 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए| मिश्रित फसल में मूंग की बीज दर 8 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखते है|
बीजोपचार
जैविक- बुवाई से पूर्व मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए मूंग एवं उड़द के बीज को ट्राइकोडरमा 5.0 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें, इसके पश्चात् बीज को राइजोबियम और फॉस्फोरस घोलक जीवाणु (पी एस बी) प्रत्येक का 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके ही बुवाई करें|
रासायनिक- मिटटी और बीज जनित रोगों से बीजों के बचाव के लिए थायरम 2 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम केप्टान (1:2) 3 ग्राम दवा या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर लें| इसके बाद बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू एस से 7 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें|
बुवाई विधि- सीड ड्रिल या देशी हल के पीछे नाई या चोंगा बॉधकर केवल पंक्तियों में ही बुवाई करना चाहिए| खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दूरी30- 45 सेंटीमीटर और बसंत (ग्रीष्म) के लिये 25-30 सेंटीमीटर रखी जाती है| पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर रखते हुये 4 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिये|
अन्तरवर्तीय खेती- मूंग कम अवधि में तैयार होने वाली दलहनी फसल हैं जिसे फसल चक्र में सम्मलित करना लाभदायक रहता है। मक्का-आलू-गेहूँ -मूंग(बसंत),ज्वार+ मूंग -गेहूँ , अरहर + मूंग -गेहूँ , मक्का +मूंग -गेहूँ , मूंग -गेहूँ । अरहर की दो कतारों के बीच मूंग की दो कतारे अन्तः फसल के रूप में बोना चाहिये। गन्ने के साथ भी इनकी अन्तरवर्तीय खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है|
खाद और उर्वरक- मूंग के लिए 15 से 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 से 40 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम जिंक प्रति हेक्टेयर देना चाहिए| आलू व चने के बाद उर्वरक की आवश्यकता कम पड़ती है| नाइट्रोजन और फास्फोरस की पूर्ति के लिए 100 किलोग्राम डी ए पी प्रति हेक्टेयर का प्रयोग कर सकते है| उर्वरकों का प्रयोग फर्टीसीड ड्रिल या हल के पीछे चागा बॉधकर कूड़ों में बीज से 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे देना चाहिए|
गौण और सूक्ष्म पोषक तत्व
गंधक (सल्फर)- काली और दोमट मिटटी में 20 किलोग्राम गंधक या 22 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के समय प्रत्येक फसल के लिये देना पर्याप्त होता है| कमी होने पर लाल बलई मिटटी हेतु 40 किलोग्राम गंधक या 44 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|
जिंक- जिंक की मात्रा का निर्धारण मिटटी के प्रकार और उसकी उपल्बधता के आधार पर की जानी चाहिए, जैसे-
- लाल बलई व दोमट मिटटी-5 किलोग्राम, जिंक (12.5 किलोग्राम, जिंक सल्फेट हेप्टा हाइडेट या 7.5 किलोग्राम, जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|
- काली मिटटी-5 से 2.0 किलोग्राम, जिंक (7.5 से 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करनी चाहिए|
- जलोढ़ और मध्यम मिटटी-5 किलोग्राम जिंक (12.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 7.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) के साथ 200 किलोग्राम गोबर की खाद का प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|
- उच्च कार्बनिक पदार्थ वाली तराई क्षेत्रों की मिटटी-बुवाई के पूर्व 3 किलोग्राम जिंक (15 किलोग्राम जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 9 किलोग्राम जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हेक्टर की दर से तीन वर्ष के अन्तराल पर देवें|
- कम कार्बनिक पदार्थ वाली पहाड़ी बलुई दोमट मिटटी-5 किलोग्राम जिंक (12.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 7.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से एक वर्ष के अन्तराल में प्रयोग करें|
बोरॉन- बोरॉन की कमी वाली मिटटी में उगाई जाने वाली मूंग की फसल में 0.5 किलोग्राम बोरॉन (5 किलोग्राम बोरेक्स या 3.6 किलोग्राम डाइसोडियम टेट्राबोरेट पेन्टाहाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें|
मैंगनीज- मैंगनीज की कमी वाली बलुई दोमट मिटटी में 2 प्रतिशत मैंगनीज सल्फेट के घोल का बीज उपचार या मैंगनीज सल्फेट के 1 प्रतिशत घोल का पर्णीय छिड़काव लाभदायक पाया गया है|
मॉलिब्डेनम- मॉलिब्डेनम की कमी वाली मिटटी में 0.5 किलोग्राम सोडियम मॉलिब्डेट प्रति हैक्टर की दर से आधार उर्वरक के रूप में या 0.1 प्रतिशत सोडियम मॉलिब्डेट के घोल का दो बार पर्णीय छिड़काव करना चाहिए या मॉलिब्डेनम के घोल में बीज शोषित करें| ध्यान रहे- कि अमोनियम मॉलिब्डेनम का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब मिटटी में मॉलिब्डेनम तत्व की कमी हो|
सिंचाई प्रबंधन- प्रायः वर्षा ऋतु में मूंग की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पडती है फिर भी इस मौसम में एक वर्षा के बाद दूसरी वर्षा होने के बीच लम्बा अन्तराल होने पर अथवा नमी की कमी होने पर फलियाँ बनते समय एक हल्की सिंचाई आवश्यक होती है। बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिये। वर्षा के मौसम में अधिक वर्षा होने पर अथवा खेत में पानी का भराव होने पर फालतू पानी को खेत से निकालते रहना चाहिये, जिससे मृदा में वायु संचार बना रहता है।
खरपतवार नियंत्रण-
बुआई के 25 से 30 दिन तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं| यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं, तो बोवाई के 20 से 25 दिन के बाद निराई कर देना चाहिए| दूसरी निंराई बुआई के 35-45 दिन के बाद करनी चाहिए| जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर समस्या हों वहाँ खरपतवार नाशक रसायन का छिड़काव करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है| इसके लिए पेन्डीमिथालीन 30 ई सी, 750 से 1000 ग्राम मात्रा (सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर) बुवाई के 0 से 3 दिन तक प्रयोग करें| खरपतवार नाशक दवाओं के छिडकाव के लिये हमेशा फ्लैट फेन नोजल का ही उपयोग करे|
कीट रोकथाम-
दीमक- दीमक फसल के पौधों की जड़ो को खाकर नुकसान पहुंचती हैl बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में क्यूनालफोस 1.5 प्रतिशत या क्लोरोपैरिफॉस पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से मिटटी में मिला देनी चाहिए बोनेके समय बीज को क्लोरोपैरिफॉस कीटनाशक की 2 मि.ली. मात्रा को प्रति किलो ग्राम बीज दर से उपचरित कर बोना चाहिए I
कातरा- कातरा का प्रकोप बिशेष रूप से दलहनी फसलों में बहुत होता है l इस किट की लट पौधों को आरम्भिक अवस्था में काटकर बहुत नुकसान पहुंचती है l इसके नियंत्रण हेतु खेत के आस पास कचरा नहीं होना चाहिये l कतरे की लटों पर क्यूनालफोस1 .5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव कर देना चाहिये I
थ्रिप्स या रसचूसक कीट- रसचूसक कीट या थ्रिप्स मूंग के पौधों का रस चूसते है| जिससे पौधे पीले, कमज़ोर और विकृत हो जाते है, जिससे पैदावार कम होती है|
थ्रिप्स या रसचूसक कीट रोकथाम- थायोमेथोक्जम 25 डब्ल्यू जी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर, पानी में घोल बनाकर छिडकाव करने से थ्रिप्स का अच्छा नियंत्रण होता है| इथियोन 50 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिडकाव आवश्यकतानुसार करना चाहिए|
माहू और सफेद मक्खी- माहू कीट के शिशु और प्रौढ़ मूंग के पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलो तथा नई फलियों से रस चूसकर उसे कमजोर कर देते है| सफेद मक्खी बहुभक्षी कीट है, जो फसल में शुरू से पकने तक नुकसान करता है|
माहू और सफेद मक्खी रोकथाम- डायमिथोएट 1000 मिलीलीटर प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल, प्रति 600 लीटर पानी में 125 मिलीलीटर दवा के हिसाब से प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना लाभप्रद रहता है|
फली छेदक- फली छेदक को नियंत्रित करने के लिए मोनोक्रोटोफास आधा लीटर या मैलाथियोन या क्युनालफ़ांस 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो हेक्टयर की दर से छिड़काव /भुरकाव करनी चहिये। आवश्यकता होने पर 15 दिन के अंदर दोबारा छिड़काव /भुरकाव किया जा सकता है।
तना झुलसा रोग-इस रोग की रोकथाम हेतु 2 ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करनी चहिये बुवाई के 30-35 दिन बाद 2 किलो मैकोजेब प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिये ।
पीला चितकबरा रोग- पीली कुर्बरता के रूप में यह रोग मूंग की रोग ग्राही किस्मों में अधिक व्यापक होता है| नई उगती हुई पत्तियों में प्रारंभ से ही कुर्बरता के लक्षण दिखाई देते हैं| जिन पत्तियों में पीली कुर्बरता या पीली ऊतकक्षय कर्बरता के मिले-जुले लक्षण दिखाई देते हैं, जिससे पौधे आकार में छोटे रह जाते हैं|
पीला चितकबरा रोग रोकथाम
- श्वेत मक्खी इस रोग का वाहक है| इससे रोकथाम करने के लिए श्वेत मक्खी के नियंत्रण हेतु थायोमेथाक्साम 25 डब्लू जी, 2 ग्राम प्रति लीटर या डायमिथिएट 30 ई सी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 2 से 3 बार 15 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें|
कटाई और मड़ाई- मूंग की फसल क्रमशः 65-70दिन में पक जाती है। अर्थात जुलाई में बोई गई फसल सितम्बर तथा अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक कट जाती है। फरवरी-मार्च में बोई गई फसल मई में तैयार हो जाती है। फलियाँ पक कर हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने पर कटाई योग्य हो जाती है। पौधें में फलियाँ असमान रूप से पकती हैं यदि पौधे की सभी फलियों के पकने की प्रतीक्षा की जाये तो ज्यादा पकी हुई फलियाँ चटकने लगती है अतः फलियों की तुड़ाई हरे रंग से काला रंग होते ही 2-3 बार में करें एंव बाद में फसल को पौधें के साथ काट लें। अपरिपक्वास्था में फलियों की कटाई करने से दानों की उपज एवं गुणवत्ता दोनो खराब हो जाते हैं। हॅंसिए से काटकर खेत में एक दिन सुखाने के उपरान्त खलियान में लाकर सुखाते है। सुखाने के उपरान्त डडें से पीट कर या बैंलो को चलाकर दाना अलग कर लेते है वर्तमान में मूंग एवं उड़द की थ्रेसिंग हेतु थ्रेसर का उपयोग कर गहाई कार्य किया जा सकता है।
पैदावार- मुंग की खेती उन्नत तरीके से करने पर फसल से 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार प्राप्त की जा सकती है| मिश्रित फसल में 3 से 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है|
भण्डारण- भण्डारण करने से पूर्व दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाने के उपरान्त ही जब उसमें नमी की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत रहे तभी वह भण्डारण के योग्य रहती है|
मूंग का अधिक उत्पादन लेने के लिए क्या करें
- स्वस्थ और प्रमाणित बीज का उपयोग करें|
- सही समय पर बुवाई करें, देर से बुवाई करने पर पैदावार कम हो जाती है|
- किस्मों का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुसार करें|
- बीज उपचार अवश्य करें जिससे पौधो को बीज और मिटटी जनित बीमारियों से प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित होने से बचाया जा सके|
- मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक उपयोग करे जिससे भूमि की उर्वराशक्ति बनी रहती है, जो अधिक उत्पादन के लिए जरूरी है|
- खरीफ मौसम में मेड नाली पद्धति से बुबाई करें|
- समय पर खरपतवारों नियंत्रण और कीट और रोग रोकथाम करें|
- पीला मोजेक रोग रोधी किस्मों का चुनाव क्षेत्र की अनुकूलता के अनुसार करे|
- पौध संरक्षण के लिये एकीकृत पौध संरक्षण के उपायों को अपनाना चाहिए|
Source By - किसान कल्याण तथा कृषि विकास mpkrishi , दैनिक जग्रति