Monday, February 10, 2020

गेहूं फसल में रोग की पहचान एवं उपचार

पौधों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण पत्तियों पर दिखाई देते हैं. हर एक तत्व की कमी के लक्षण अलग-अलग होते है. अधिकतर अवस्थाओं में पत्तियां पीली हो जाती हैं. अगर इस पीलेपन की समय पर पहचान हो जाए तो उपयुक्त खाद या दवा स्प्रे के द्वारा इसको दूर किया जा सकता है l


क्यों होता है पीलापन ?


गेहूं की खड़ी फसल में पीलपन के कई कारण हो सकते है. इस पीलेपन की समस्या का समाधान पीलेपन के कारण में ही निहित है इसलिए पहले पीलेपन के कारण को जानना अति आवश्यक है l



कार्बन नत्रजन अनुपात का महत्व


किसी भी अवशेष या भूमि की कार्बन:नत्रजन (C:N) अनुपात 20:1 के आसपास आदर्श मानी जाती है. परंत यदि यह अनुपात ज्यादा हो जाए तो मृदा के अंदर परिवर्तन होता ने किसान भाई खेत तैयार करते है । तो पुरानी फसल के कार्बनिक अवशेष खेत में मिल जाते हैं. इन अवशेषों के कारण खेत में कार्बन तथा नत्रजन का अनुपात बढ़ता है. इसे सी:एन अनुपात कहते हैं यानि कार्बन:नत्रजन अनुपात. यह अनुपात प्राप्त पोषक तत्वों की मात्रा फज्यादा मात्रा में पीलापन परानी पत्तियों में दिखाई साथ सल्फर की मांग ऑक्साइड पैदा करते देता है. हल्का पीलापन धारियों हो जाती है.ऐसे में सल्फर नाइटेट नत्रजन को, में दिखाई देता है. अगर खरीफ मिली व साडावीर फंगस लेनी होती है, सीजन में खेत में ज्वार या मक्का का छिडकाव या सल को मिलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि हम धान की पराली मिट्टी में दबाएं जिसकी सी: एन अनुपात 80:1 होती है, तो सूक्ष्म जीव जसे बैक्टीरिया, फफूंद आविन्टनोमीसीटेस आदि क्रियाशील हो जाते हैं तथा इसके विघटन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. ये ज्यादा मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड पैदा करते हैं. परंतु ये नाइट्रेट  नत्रजन को, जाकि पौधों को लेनी होती है, उसे भोजन के रूप में उपयोग करते है. इससे मृदा में नत्रजन की कमी आ जाती है तथा कमी के लक्षण पुरानी पत्तियों पर पीलेपन के रूप में दिखाई देते हैं. इससे नत्रजन की कमी आती है जिसको रोकने के लिए बुवाई के समय यूरिया डालने की सलाह दी जाती है l


नत्रजन की कमी


नत्रजन पौधों में चलायमान है, इसकी कमी के लक्षण पौधे  में पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं. नयी पत्तियां हरी रहती हैं. पुरानी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. कमी ग्रस्त पौधों की ऊंचाई कम होती है तथा शाखाए कम बनती  है l ज्यादा कमी की अवस्था में पूरी पत्ती पीली होकर जल जाती है l इस तत्व की पूर्ति के लिए आवस्यकता के अनुसार नत्रजन और फॉस्फोरस का उपयोग करें  l 


लौह की कमी


लोहे की कमी में पीलापन नई पतियों पर दिखाई देता है जबकि नाइट्रोजन की कमी में पीलापन पुरानी पत्तियों में दिखाई देता है. हल्का पीलापन धारियों दिखाई देता है. अगर खरीफ सीजन में खेत में ज्वार या मक्का की फसल की बवाई की गई हो तो इनकी पत्तियों को देखें. यदि नई पत्तियों पर सफेद धारियाँ दिखाई दें तो लौह तत्व की कमी है.l ऐसे में फेरस सल्फेट 1 किलोग्राम का उपयोग करें l


सल्फर की कमी


सल्फर की कमी के कारण भी फसलों में नए पत्ते पीले हो जाते हैं. सल्फर की कमी गेहूं  में कम ही देखने को आती है, पर मिट्टी की जांच करवा कर सल्फर की कमी को दूर करना लाभदायक रहता है, फसल के बुबाई  से पहले खेत तैयार करते समय 200 किलोग्राम 4 (बैग) जिप्सम डालने से खेत की भौतिक दशा के सुधार होने के साथ- साथ सल्फर की मांग भी पूरी  हो जाती है l .ऐसे में सल्फर 200 मिली छिडकाव करना लाभदायक है l


बोरान की कमी


बोरान की कमी के कारण भी फसलों में नए पत्ते पीले हो जाते हैं. बोरान की कमी गेहं में मिट्टी की जांच करवा कर बोरान की कमी को दूर करना लाभदायक रहता है l .ऐसे में 3 किलोग्राम का उपयोग करें l


अन्य कारण 


1. गेहूं की फसल में सूत्रकृमि प्रकोप के कारण जड़ नष्ट हो  जाती हैं,  जिसके कारण पौधों समुचित विकास नहीं हो पाता तथा जड़ों के पोषक तत्व न  उठाने के कारण पीलापन आ जाता है l 


2. दीमक के प्रकोप के कारण भी जडे या तना में पूर्ण रूप या आंशिक रूप से कटाव हो जाता है जिसके कारण पौधा पीला पड़ जाता है l 


3. जलभराव सेम या मिट्टी के लवणीय होने के कारण पौधों की जड़े क्षतिग्रस्त हो जाती जिसके परिणामस्वरूप पोषक तत्वों का ग्रहण ठीक प्रकार से नहीं हो पाता जिसके कारण पोषक तत्वों का कमी आ जाती है l 


4. फफूंद जनित रोग जैसे की पीला रत्वा आदि के प्रकोप से भी फसल में पीलापन आ जाता है. अतः इस प्रकार के पीलपन को पहचान कर इसका समय पर निदान करना चाहिए l 


डॉ. टीए उस्मानी आगे कहते हैं, 'इस बीमारी के लक्षण ज्यादातर नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलते हैं, साथ ही पोपलरव यूकेलिप्टस के आस-पास उगाई गई फसल में ये रोग पहले आती है। पत्तों पर पीला होना ही पीला रतुआ नहीं है, पीला रंग होने के कारण फसल में पोषक तत्वों की कमी, जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होना व पानी का ठहराव भी हो सकता है। पीला रतुआ बीमारी में गेहूं की पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है, जिसे हाथ से छूने पर हाथ पीला हो जाता है।' पतों का पीलापन होना ही पीला रतुआ नहीं कहलाता, बल्कि पाउडरनुमा पाला पदार्थ हाथ पर लगना इसका लक्षण है। पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग की धारी दिखाई देती है, जो धीरे-धीरे पूरी पत्तियों को पीला कर देती है। पीला पाउडर जमीन पर गिरा देखा जा सकता है। पहली अवस्था में यह रोग खेत में 10-15 पोधों पर एक गोल दायरे में शुरु होकर बाद में पूरे खेत में फैल जाता है। तापमान बढ़ने पर पीली धारियां पत्तियों की निचली सतह पर काले रंग में बदल जाती है।


जैविक उपचार 


एक किग्रा. तम्बाकू की पत्तियों का पाउडर 20 किलोग्राम लकड़ी की राख के साथ मिलाकर बीज बुबाई या पौध रोपण से पहले खेत में छिड़काव करें।


गोमत्र व नीम का तेल मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर लें और 500 मिली. मिश्रण को प्रति पम्प के हिसाब से फसल में तर-बतर छिडकाव करें। गोमत्र 10 लीटर व नीम की पत्ती दो किलो व लहसुन  250 ग्राम का काढ़ा बनाकर 80- 90 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ छिड़काव करें। पांच लीटर मट्ठा को मिट्टी के घड़े में भरकर सात दिनों तक मिट्टी में दबा दें, उसके बाद 40 लीटर पानी में एक लीटर मट्ठा मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।


रसायनिक उपचार


रोग के लक्षण दिखाई देते ही 200 मिली. प्रोपीकोनेजोल 25 ई.सी. या पायराक्लोट्ररोबिन प्रति लीटर पानी में मिलाकर  प्रति एकड छिडकाव करें। रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल में करें।


Written By Dr. KK Tripathi ( Gram Deep News Paper  Feb2020)


 


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