Monday, February 10, 2020

गेहूं फसल में रोग की पहचान एवं उपचार

पौधों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण पत्तियों पर दिखाई देते हैं. हर एक तत्व की कमी के लक्षण अलग-अलग होते है. अधिकतर अवस्थाओं में पत्तियां पीली हो जाती हैं. अगर इस पीलेपन की समय पर पहचान हो जाए तो उपयुक्त खाद या दवा स्प्रे के द्वारा इसको दूर किया जा सकता है l


क्यों होता है पीलापन ?


गेहूं की खड़ी फसल में पीलपन के कई कारण हो सकते है. इस पीलेपन की समस्या का समाधान पीलेपन के कारण में ही निहित है इसलिए पहले पीलेपन के कारण को जानना अति आवश्यक है l



कार्बन नत्रजन अनुपात का महत्व


किसी भी अवशेष या भूमि की कार्बन:नत्रजन (C:N) अनुपात 20:1 के आसपास आदर्श मानी जाती है. परंत यदि यह अनुपात ज्यादा हो जाए तो मृदा के अंदर परिवर्तन होता ने किसान भाई खेत तैयार करते है । तो पुरानी फसल के कार्बनिक अवशेष खेत में मिल जाते हैं. इन अवशेषों के कारण खेत में कार्बन तथा नत्रजन का अनुपात बढ़ता है. इसे सी:एन अनुपात कहते हैं यानि कार्बन:नत्रजन अनुपात. यह अनुपात प्राप्त पोषक तत्वों की मात्रा फज्यादा मात्रा में पीलापन परानी पत्तियों में दिखाई साथ सल्फर की मांग ऑक्साइड पैदा करते देता है. हल्का पीलापन धारियों हो जाती है.ऐसे में सल्फर नाइटेट नत्रजन को, में दिखाई देता है. अगर खरीफ मिली व साडावीर फंगस लेनी होती है, सीजन में खेत में ज्वार या मक्का का छिडकाव या सल को मिलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि हम धान की पराली मिट्टी में दबाएं जिसकी सी: एन अनुपात 80:1 होती है, तो सूक्ष्म जीव जसे बैक्टीरिया, फफूंद आविन्टनोमीसीटेस आदि क्रियाशील हो जाते हैं तथा इसके विघटन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. ये ज्यादा मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड पैदा करते हैं. परंतु ये नाइट्रेट  नत्रजन को, जाकि पौधों को लेनी होती है, उसे भोजन के रूप में उपयोग करते है. इससे मृदा में नत्रजन की कमी आ जाती है तथा कमी के लक्षण पुरानी पत्तियों पर पीलेपन के रूप में दिखाई देते हैं. इससे नत्रजन की कमी आती है जिसको रोकने के लिए बुवाई के समय यूरिया डालने की सलाह दी जाती है l


नत्रजन की कमी


नत्रजन पौधों में चलायमान है, इसकी कमी के लक्षण पौधे  में पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं. नयी पत्तियां हरी रहती हैं. पुरानी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. कमी ग्रस्त पौधों की ऊंचाई कम होती है तथा शाखाए कम बनती  है l ज्यादा कमी की अवस्था में पूरी पत्ती पीली होकर जल जाती है l इस तत्व की पूर्ति के लिए आवस्यकता के अनुसार नत्रजन और फॉस्फोरस का उपयोग करें  l 


लौह की कमी


लोहे की कमी में पीलापन नई पतियों पर दिखाई देता है जबकि नाइट्रोजन की कमी में पीलापन पुरानी पत्तियों में दिखाई देता है. हल्का पीलापन धारियों दिखाई देता है. अगर खरीफ सीजन में खेत में ज्वार या मक्का की फसल की बवाई की गई हो तो इनकी पत्तियों को देखें. यदि नई पत्तियों पर सफेद धारियाँ दिखाई दें तो लौह तत्व की कमी है.l ऐसे में फेरस सल्फेट 1 किलोग्राम का उपयोग करें l


सल्फर की कमी


सल्फर की कमी के कारण भी फसलों में नए पत्ते पीले हो जाते हैं. सल्फर की कमी गेहूं  में कम ही देखने को आती है, पर मिट्टी की जांच करवा कर सल्फर की कमी को दूर करना लाभदायक रहता है, फसल के बुबाई  से पहले खेत तैयार करते समय 200 किलोग्राम 4 (बैग) जिप्सम डालने से खेत की भौतिक दशा के सुधार होने के साथ- साथ सल्फर की मांग भी पूरी  हो जाती है l .ऐसे में सल्फर 200 मिली छिडकाव करना लाभदायक है l


बोरान की कमी


बोरान की कमी के कारण भी फसलों में नए पत्ते पीले हो जाते हैं. बोरान की कमी गेहं में मिट्टी की जांच करवा कर बोरान की कमी को दूर करना लाभदायक रहता है l .ऐसे में 3 किलोग्राम का उपयोग करें l


अन्य कारण 


1. गेहूं की फसल में सूत्रकृमि प्रकोप के कारण जड़ नष्ट हो  जाती हैं,  जिसके कारण पौधों समुचित विकास नहीं हो पाता तथा जड़ों के पोषक तत्व न  उठाने के कारण पीलापन आ जाता है l 


2. दीमक के प्रकोप के कारण भी जडे या तना में पूर्ण रूप या आंशिक रूप से कटाव हो जाता है जिसके कारण पौधा पीला पड़ जाता है l 


3. जलभराव सेम या मिट्टी के लवणीय होने के कारण पौधों की जड़े क्षतिग्रस्त हो जाती जिसके परिणामस्वरूप पोषक तत्वों का ग्रहण ठीक प्रकार से नहीं हो पाता जिसके कारण पोषक तत्वों का कमी आ जाती है l 


4. फफूंद जनित रोग जैसे की पीला रत्वा आदि के प्रकोप से भी फसल में पीलापन आ जाता है. अतः इस प्रकार के पीलपन को पहचान कर इसका समय पर निदान करना चाहिए l 


डॉ. टीए उस्मानी आगे कहते हैं, 'इस बीमारी के लक्षण ज्यादातर नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलते हैं, साथ ही पोपलरव यूकेलिप्टस के आस-पास उगाई गई फसल में ये रोग पहले आती है। पत्तों पर पीला होना ही पीला रतुआ नहीं है, पीला रंग होने के कारण फसल में पोषक तत्वों की कमी, जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होना व पानी का ठहराव भी हो सकता है। पीला रतुआ बीमारी में गेहूं की पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है, जिसे हाथ से छूने पर हाथ पीला हो जाता है।' पतों का पीलापन होना ही पीला रतुआ नहीं कहलाता, बल्कि पाउडरनुमा पाला पदार्थ हाथ पर लगना इसका लक्षण है। पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग की धारी दिखाई देती है, जो धीरे-धीरे पूरी पत्तियों को पीला कर देती है। पीला पाउडर जमीन पर गिरा देखा जा सकता है। पहली अवस्था में यह रोग खेत में 10-15 पोधों पर एक गोल दायरे में शुरु होकर बाद में पूरे खेत में फैल जाता है। तापमान बढ़ने पर पीली धारियां पत्तियों की निचली सतह पर काले रंग में बदल जाती है।


जैविक उपचार 


एक किग्रा. तम्बाकू की पत्तियों का पाउडर 20 किलोग्राम लकड़ी की राख के साथ मिलाकर बीज बुबाई या पौध रोपण से पहले खेत में छिड़काव करें।


गोमत्र व नीम का तेल मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर लें और 500 मिली. मिश्रण को प्रति पम्प के हिसाब से फसल में तर-बतर छिडकाव करें। गोमत्र 10 लीटर व नीम की पत्ती दो किलो व लहसुन  250 ग्राम का काढ़ा बनाकर 80- 90 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ छिड़काव करें। पांच लीटर मट्ठा को मिट्टी के घड़े में भरकर सात दिनों तक मिट्टी में दबा दें, उसके बाद 40 लीटर पानी में एक लीटर मट्ठा मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।


रसायनिक उपचार


रोग के लक्षण दिखाई देते ही 200 मिली. प्रोपीकोनेजोल 25 ई.सी. या पायराक्लोट्ररोबिन प्रति लीटर पानी में मिलाकर  प्रति एकड छिडकाव करें। रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल में करें।


Written By Dr. KK Tripathi ( Gram Deep News Paper  Feb2020)


 


Sunday, February 9, 2020

सर्पगंधा की खेती कर लाखो कमाए

 


आयुर्वेदिक तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति में जड़ों का प्रयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों, जैसे मस्तिष्क सम्बन्धी रोगों, मिरगी कंपन इत्यादि, आंत की गड़बड़ी तथा प्रसव आदि विभिन्न बीमारियों के उपचार में बहुतायत से उपयोग होता हैl



भूमि तथा जलवायु


इसकी खेती विभिन्न मृदा किस्मों जैसे कि बलुवर, बलुवर दोमट तथा भारी जमीनों में हो रही है। इसे बहुत हल्की बलवर जमीन जिसमें जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो नहीं उगाना चाहिये। यह पौधा अम्लीय तथा क्षारीय दोनों प्रकार की मिट्टियों में आसानी से उगाया जा सकता है। जिस भूमि का पी. एच. 8.5 से ज्यादा हो वह इसकी खेती के लिये उपयुक्त नहीं होती हैl


पौध तैयार करना


विभिन्न विधियों जैसे सर्पगंधा के पौध बीज, तने तथा जड़ की कटिंग व जड़ों के टूठ लगाकर तैयार किये जा सकते हैंl


बीज द्धारा


इस विधि से सामान्यतः पौधा नहीं तैयार करते हैं, क्योंकि इसके बीजों का जमाव बहुत ही कम (20 से 25 प्रतिशत) होता है। यदि बीज के द्वारा ही तैयार करना है तो बिल्कुल ताजे बीजों का प्रयोग करना चाहिए। तीन महीना के भीतर तैयार बीज का अंकुरण प्रतिशत ठीक रहता हैl 


जड़ों की कलम द्वारा


ऐसे पौध की जड़े जिसमें एल्कलायड की मात्रा अधिक हो उनका चुनाव पौध लगाने के लिये करते हैं। इससे अधिक एल्कलायड देने वाले पौधे प्राप्त होंगे। पौध तैयार करने के लिए 7.5 से 10 से०मी० लम्बी जड़े काटते हैं। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जड़ों की मोटाई 12.5 मि.मी. से अधिक न हो तथा प्रत्येक टुकड़े में 2 गाँठे हों । इस प्रकार की जड़ों को करीब 5 से.मी. गहराई के नालियों में लगाकर अच्छी प्रकार से ढक देते हैं। इस विधि से फसल लगाने में करीब 100 कि.ग्रा. ताजी जड़ों के टुकड़ों की जरूरत होती है।


रोपाई


बरसात का समय इसकी रोपाई के लिये उपयुक्त होता है। रोपाई के समय पौध की ऊंचाई 7.5 से 12 से.मी. के बीच होना चाहिए। नर्सरी से पौध उखाड़ते समय इस बात का ध्यान रहे कि उसकी जड़ें टूटने न पाये । उखाड़ने के बाद पौधों को भीगे बोरे या हरी पत्तियों से ढ़ककर खेत में सीधे ले जाकर लगा देना चाहिये। लाइन से लाइन 60 से.मी. की दूरी तथा पौध से पौध की दूरी 30 से.मी. होनी चाहिये।


सिंचाई


यद्यपि सर्पगंधा असिंचित अवस्था में पैदा किया जा सकता है लेकिन पानी की कमी की वजह से पैदावार कम हो जाती है। यदि सिंचित अवस्था में इसकी खेती की जा रही है तो इसे गर्मियों के अलावा एक माह में एक बार तथा गर्मियों में माह में दो बार सिंचाई करते हैं। यदि पौध लगाने के बाद बरसात नहीं होती है तो रोजाना हल्की सिंचाई पौध अच्छी तरह लगने तक करते हैं।


खाद एवं उर्वरक


प्रति हेक्टेयर 10 टन गोबर की खाद एवं नत्रजन , फास्फोरस व पोटाश हर एक की 30 कि.ग्रा. की दर से बुवाई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए। इसके बाद 25 कि.ग्रा. नत्रजन दो बार पौध अच्छी तरह लगने के बाद अगस्त - सितम्बर में तथा फरवरी - मार्च में देते हैं। बाद के दूसरे तथा तीसरे वर्षों में भी उपरोक्त दिये गये उर्वरकों की मात्रा प्रयोग करते हैंl


निराई-गुड़ाई


शुरू में पौधे की वृद्धि कम होने के कारण खेत में खर-पतवार काफी मात्रा में हो जाते हैं,  जिसकी वजह से पौधे की बढ़वार और भी कम हो जाती है। यदि इस अवस्था में खर-पतवार नियंत्रित नहीं किये गये तो ये सर्पगंधा के पौधे को ढक लेते हैं,  जिससे पौधे मर भी जाते हैं। अतः लगाने के 15-20 दिन के बाद खुरपी से निराई कर देनी चाहिये तत्पश्चात साल में दो बार और निराई गुड़ाई करना चाहिए।


जड़ों की खुदाई, सुखाना तथा भंडारण


सिंचित अवस्था में जड़े 2 से 3 वर्ष की उम्र में खुदाई के लिये तैयार हो जाती है। इनकी खुदाई का उचित समय दिसम्बर माह है, क्योंकि इस समय पौधा सुसुप्ता अवस्था में रहता है, तथा पत्तियाँ भी कम होती है, इसकी जड़ें काफी गहराई तक जाती है, इन्हें अच्छी तरह खोदकर निकालना चाहिये। उसके बाद पानी में जड़े धोकर छाया में सुखाना चाहिये। तत्पश्चात जड़ो को जूट के बोरो में भरकर बाजार हेतु रखते हैं।



उपज


परीक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि यदि 60x30 से.मी. में पौधे लगाये गये हैं तो करीब 1175 कि.ग्रा. तक सूखी जड़ें प्राप्त होती है, औसतन 10 कुन्टल जड़ें प्राप्त होती है।


व्यय


1. खेती की तैयारी पर व्यय  3,000.00 


2. खाद एवं कीटनाशकों पर व्यय 5,000.00


3. बीज की लागत (तीन कि.या. बीज 5000 रू.प्रति कि.या. की दर से) 15,000.00 


4. नर्सरी तैयार करने की लागत 1,000.00


5. ट्रांसप्लांटिंग की लागत 2,000.00


6. खरपतवार नियंत्रण तथा निंदाई गुड़ाई की लागत 3,500.00


7. बीजों की चुनाई पर व्यय 3,000.00


8. सिंचाई पर व्यय  3,000.00 


9. 3 माह तक फसल की देखभाल पर व्यय 5,000.00 


10. फसल उखाड़ने तथा सुखाने आदि पर व्यय 3,000.00


11. पैकिंग तथा ट्रांसपोर्टेशन आदि पर व्यय 5,000.00


                                           कुल योग 48,500.00 


प्राप्तियां


1. सूखी जड़ों की बिक्री से प्राप्तियां (8 क्विंटल जड़े 250/- प्रति कि.या. की दर से) 2,00,000.00


2. बीजों की बिक्री से प्राप्तियां 25 कि.या. बीज, 1500 रू. प्रति कि.या. की दर से बिक्री) 37,500.00


                                            कुल योग  2,37,500.00


 


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Tuesday, February 4, 2020

तुलसी की खेती कर एक एकड में  लाखों कमाए 

How to start tulsi farming


तुलसी (बासिल) की खेती यह एक वर्षीय शाखीय व औषधीय पौधा है, यह एलोपेथी होमोपेथी व यूनानी दवाओ मे उपयोग किया जाता है, इसका उपयोग से मानव शरीर रोग प्रतिरोधक्हत मता मे वृद्धि होती है तथा टॉक्सिक को बाहर करता है तुलसी उष्ण , समशीतोष्ण जलवायु मे अच्छी तरह पनपता है,रेतीली बलुई मिट्टी ,दोमट,दोमट मटियार भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती हैl मधुमेह होने पर तुलसी(सब्जा) के बीजों का सेवन अत्यन्त लाभकारी होता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर और आयरन अत्यधिक मात्रा में होता है। इसके अतिरिक्त इससे वजन घटाने, ब्लड प्रेशर कम करने, पाचनशक्ति बढ़ाने, खांसी-जुकाम कम करने, इम्यूनिटी बढ़ाने और फ्लू की रोकथाम करने के लिए भी इस्तमाल  किया जा सकता है।



एक एकड़ प्रोजेक्ट (43560 sq.feet)



  • प्रति एकड़ - 43 हजार पौधे

  • रोपण - 2 x 1 फीट

  • लाइन से लाइन की दूरी - 2* पौधे से पौधे की दूरी-1*)

  • उत्पादन प्रारम्भ - 150 दिन ,

  • कुल उत्पादन  - 500-1000 kg / एकड़ बाजार

  • भाव प्रति क्विंटल  - 10000 से 25000

  • औसतन उत्पादन - 600 kg

  • मुनाफा -  60,000/- से 1,08,000/- एकड़ प्रति वर्ष


तुलसी की खेती करने विधि 



  1.  साधारण नाम  - बासिल सीड 

  2. वानस्पतिक नाम - आसिमम सेक्टम

  3. उन्नतशील किस्मे - बासिल सुपर,बासिल एस-149 (संसोधित किस्मे)

  4. परिचय - यह एक वर्षीय शाखीय व औषधीय पौधा है यह एलोपेथी होमोपेथी व यूनानी दवाओ मे उपयोग किया जाता है, इसका उपयोग से मानव शरीर मे रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है तथा टॉक्सिक को बाहर करता है ।

  5. उपयोग - रोग प्रतिरोधक क्षमता ,पाचन शक्ति बढ़ाने,वजन, BP,ख़ासी,जुखाम मे उपयोग किया जाता है।

  6. जलवायु व मिट्टी - तुलसी उष्ण, समशीतोष्ण जलवायु मे अच्छी तरह पनपता है,  रेतीलीबलुई मिट्टी ,दोमट,दोमट मटियार भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है l 

  7. प्रवर्धन - बीज की सीधे बुवाई ,बीज की नर्सरी डालकर

  8. बीज की मात्रा - 1-2 किलो ग्राम /एकड़

  9. बुवाई का समय - जून -जुलाई माह

  10. खेत की तैयारी - एक जुताई रोटावेटर चलाकर खेत को समतल करना चाहिए फसल की बुवाई करते समय खेत मे पर्याप्त नमी होना चाहिए

  11. पोधों की अवधि -  150 दिन ।

  12. फसल की दुरी - 2x1 फीट

  13. रसायन उर्वरक - एन.पी.के.100:80:60 किलोग्राम/एकड़,5-10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद

  14. जैवउर्वरक - एन.पी.के. कॉन्सोर्टिया 5किलोग्राम/एकड़,5-10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद

  15. सिचाई -  फसल की आवश्यकता अनुसार 1 या दो सिचाई पर्याप्त है

  16. कटाई - तुलसी की कटाई चार- पाँच माह में

  17. सुखाई  -  फसल को काटने के बाद 4 से 5 दिन खेत मे ही सुखाना चाहिए फिर फसल को किसी त्रिपाल पर इकट्ठा कर, अच्छी तरह सूखने पर फसल को थ्रेशर मे निकाल लेना चाहिए

  18. भंडारण - नमी रहित व हवादार स्थान पर

  19. उपज-  500-1000 kg/ एकड़



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Saturday, February 1, 2020

तरबूज उत्पादन कीजैविक तकनीक 

तरबूज उत्पादन कीजैविक तकनीक 



तरबूज कुकरबिटेसी परिवार का "सदस्य है। इसके लिए उपयुक्त मौसम गर्मी का है। यह फसल मुख्यतः भारत के उत्तरी भागों में अधिक पैदा की जाती है। यह गर्मियों का एक मुख्य फल है जो मई-जून की तेज धूप व लू के लिए लाभदायक होता है। यह मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक हैइसमें मैग्नीशियम, सल्फर, आयरन, पोटेशियम एवं ऑक्जेलिक अम्ल होता है तथा इसमें पानी की मात्रा भी अधिक होती है।


भूमि और जलवायु तरबूज के लिए गर्म जलवायु उपयुक्त होती है। इसके कारण पौधों एवं फल की वृद्धि अच्छी होती हैबीजों के अंकुरण के लिए 20-25 डिग्री तापमान सर्वोत्तम है। ज्यादा नमी वाली जलवायु में पत्तियों में बीमारी आने लगती है।


खेत की तैयारी तरबूज की खेती के लिए सर्वप्रथम मृदा का जैव कार्बन संतलित मात्रा में होना अति आवश्यक है। इसके लिए 10 टन पकी हई गोबर की खाद प्रति एकड़ के मान से अवश्य उपयोग करें तथाइसके साथ लाभदायक सूक्ष्म जीवों जैसे एजोटोबेक्टर, पीएसबी, पोटाश घोलक जीवाणु तथा ट्राइकोडर्मा का प्रयोग अवश्य करें। सभी की मात्रा 25 किलो प्रति एकड़ के मान से उपयोग करें।


जीवामृत+कल्चर विधि


सामग्री : 180 ली. पानी, 10 किलो ताजा गोबर, 10 लीटर गौमूत्र, 2 किलो गुड़, 2 किलो बेसन, 10 लीटर कल्चर मिश्रण विधि : सभी को मिलाकर 6 दिनों तक रखना है। 20 लीटर प्रति बीघा के मान से उपयोग करें। • उपयोग : ड्रिप में छानकर देवेंसिंचाई के साथ देवें। गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट में मिलाकर उपयोग करें। • नोट : 200 लीटर ड्रम में से 180 लीटर उपयोग करें। बचे हुए 20 लीटर मिश्रण में पुनः सामग्री मिलाएँ। ऐसा कम से कम तीन बार अवश्य करें 15 दिनों के अंतराल पर।



कीट-बीमारियों पर नियंत्रण


 सामग्री : 100 लीटर गौमूत्र, 5 किलो नीम पत्ते, 5 किलो करंज पत्ते, 5 किलो आकड़ा पत्ते, 5 किलो नशेड़ी पत्ते (बेशरम), 5 किलो लहसुन, 5 किलो हरी मिर्च। • विधि : इस पूरी सामग्री को 30 दिनों तक मिलाकर रखना है। • उपयोग : 1 लीटर/पम्प उपयोग करें• नोट : 200 लीटर के ड्रम में 100 लीटर गौमूत्र लेवें। जैविक फफूंदनाशक • विधि : ताम्बे के बर्तन में 15 दिनों तक छाछ भरकर रखना है। छाछ का रंग हरा नीला हो जाएगा। उपयोग : 500 मिली से 1 लीटर/पम्प उपयोग करें



किसान भाई समझें अपने उत्पाद की सही कीमत

किसान भाई समझें अपने उत्पाद की सही कीमत



आज किसान भाइयों के सामने सबसे बड़ी समस्या है "उनके द्वारा उत्पादित अनाज का सही मूल्य नहीं मिलना कृषि में समस्त प्रकार का खर्च करने के बाद किसान के पास जो मूल्य बचता है उसमें से फायदे के नाम पर कुछ नहीं बचता, क्योंकि बीज, रासायनिक खाद व दवाइयों, खेत की तैयारी एवं श्रमिकों में होने वाला खर्च अनावश्यक रूप से कई गुना बढ़ चुका है। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो खेती से मुनाफा कमाना काफी मुश्किल साबित हो जाएगा। इसका एकमात्र विकल्प है जैविक कृषि। जैविक कृषि से आप रासायनिक खादों व दवाइयों के खर्च से पूर्ण रूप से बच सकते हैं। साथ ही उत्पादित अनाज की गुणवत्ता नियंत्रित करके आप उसका उचित मूल्य भी पा सकते हैं। हमें हमारे उत्पाद की गुणवत्ता साबित करने के लिए अपने स्तर पर कोशिश करनी होगी। यह प्रयास करने होंगे कि उपभोक्ताओं तक सीधे हमारी पहुँच हो। हम उन्हें यह बता सकें कि हमारी मेहनत और जैविक विधि के प्रयासों से फसलें उत्पादित की जाती हैं। यदि आप उपभोक्ता का विश्वास जीतने में सफल हो गए तो आपको बिचौलियों की आवश्यकता नहीं होगीइस प्रकार उपभोक्ता वर्ग को सही उत्पाद उचित मूल्य पर मिलेगा और किसानों को भी उचित मूल्य मिलेगा। आज ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन एजेन्सियों का खर्च इतना अधिक है कि जैविक अनाज कई गुना महँगा हो जाता है। और यह केवल धनी वर्ग के दायरे में ही आता है। यदि आप सभी मिलकर ये कोशिश करें कि शहरों के किचन की समस्त खाद्यान्न आधारित उत्पाद, अनाज, दालें, मसाले, सब्जियाँ आदि आप स्वयं उपभोक्ता वर्ग तक पहुँचा सकें तो यह जनहित के लिए सर्वोपरि होगा। इसमें मूल्य निर्धारण स्वयं किसान भाइयों के द्वारा होगा और यह समस्त प्रकार के वर्गों के लिए उचित होगा और उन्हें जैविक उत्पाद उचित मूल्य पर मिल सकेंगे। जैविक उत्पादों की गुणवत्ता के विषय में आजकल डॉक्टर भी समस्त लोगों को यही सलाह देते हैं कि वे जैविक खाद्यान्नों का उपयोग करें। इनमें एंटीऑक्सीडेंट भी ज्यादा होते हैं तथा पौष्टिकता और स्वाद के मामले में ये उत्पाद श्रेष्ठ हैं। हम अपने स्वास्थ्य के लिए जितना जागरूक होंगे, उतना ही हम अपने काम में श्रेष्ठतापूर्वक ध्यान दे पाएँगे। इसलिए स्वास्थ्य रक्षा और पर्यावरण सुरक्षा के लिए हमें नए कदम उठाना ही होंगे। आज की युवा पीढ़ी ने यदि इसका महत्व नहीं समझा तो हम काफी पीछे छूट जाएँगे। अब हमें इस ओर सावधानी और सतर्कता बरतनी ही होगी l 


बजट 2020

बजट 2020 " किसानों की आय को दोगुना करने के 2022 के लक्ष्य को साकार करने के लिए "


Budget 2020 review by Mr. Ravindra Pastore 


आज वित्त मंत्री ने 2020 के लिए वार्षिक बजट की घोषणा की है। कृषि, सिंचाई, ग्रामीण विकास और पंचायती राज आदि के लिए 2.83 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। एफएम ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए 16 बिन्दुओ की कार्य योजना घोषित की है। हालांकि, इनमें से अधिकांश पिछले कई दशकों से संशोधित नामों के साथ वार्षिक बजट में लगातार दिखाई दे रहे हैं। कोई बड़ा संरचनात्मक या नीतिगत परिवर्तन प्रस्तावित नहीं किया गया है जो किसानों की आय को दोगुना करने के लिए अपरिहार्य है।



भारतीय कृषि में केवल 2.62% की ग्रोथ है। 88% किसान लघु तथा सीमांत श्रेणी के हैं और विरासत के कानून के कारण, छोटे धारकों की संख्या हर दिन बढ़ रही है। भारतीय कृषि मूल्य श्रृंखला के दुष्चक्र के लिए भूमि का भारी विखंडन एक कारण है। हमारी फसलों का औसत उत्पादन अन्य एशियाई देशों की तुलना में आधा ही है। किसानों की औसत वार्षिक आय के रूप में 36,938 रुपये के साथ राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान घटकर 16.5% हो गया है।



बजट में प्रमुख जोर कृषि निर्यात को बढ़ाने पर है। लेकिन अभी भारत 2.7 लाख करोड़ रुपये का कृषि निर्यात करता है, जिसमें विश्व कृषि व्यापार की कुल निर्यात  का केवल 2.5% से अधिक ही है।



एक फसल एक जिले की नीति हालांकि किसानों की बेहतर सौदेबाजी की शक्ति और कृषि निर्यात बढ़ाने की दिशा में सुचक्र शुरू कर सकती है, लेकिन इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, सरकार को निर्यात मांग में फसलों के उत्पादन के सजातीय पैकेज को लागू करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। निर्यात मानक का अनुपालन करने वाले उचित औसत गुणवत्ता मानदंडों को विकसित करने वाली नीतियां 2022 के लक्ष्य को साकार करने में एक वास्तविक उत्प्रेरक होंगी। इस बजट में केवल किसान ट्रेन और वेयरहाउस प्रमोशन पॉलिसी, क्रेडिट और क्रॉप इंश्योरेंस जैसे लॉजिस्टिक उपायों को प्रस्तावित किया गया है, जो कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए ज्यादा महत्व नहीं देगा। और किसान बाज़ार के अवसरों को भुनाने में सक्षम नहीं होंगे l



 इस धूमिल परिदृश्य के दूसरी तरफ, दुनिया के उभरते मध्यम वर्ग के समाजों में बदलते स्वाद और फल और सब्जी को प्रमुख आहार की ओर बढ़ते रुझान के साथ कृषि में नये बढ़ते अवसरों के रूप में देखा जाता है। 
भारतीय कृषि के इस महत्वपूर्ण लक्ष्य को हल करने और बढ़ते वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने के लिए अब उत्पादों और सेवाओं के विचारों की "आउट ऑफ बॉक्स" आवश्यकता है। एग्रो स्टार्ट-अप यह जरूरत को पूरा कर सकता है। भारत में अभी 450 से अधिक एग्रो स्टार्ट-अप काम कर रहे हैं लेकिन एक बहुत ही प्रतिकूल पारिस्थितिकी तंत्र में। कृषि स्टार्ट-अप के लिए सहायक और सुविधाजनक वातावरण बनाने के लिए सरकार की नीतियों को तैयार किया जाना चाहिए ताकि ये प्रयास भारतीय किसानों की फसलों की उत्पादकता, गुणवत्ता, आपूर्ति और मूल्य दक्षता और विपणन क्षमता बढ़ाने के लिए लाभकारी समाधानों को बनाए और विकसित कर सकें।


 


Towards realizing the 2022 goal of doubling farmers’ income


Today Finance minister has announced annual budget for 2020 .Herein Rs 2.83 lacs crore has been allocated for agriculture, irrigation, rural development and panchayati raj etc. FM has declared 16 points action plan for doubling the farmers’ income by 2022. However most of these points have been continuously appearing in the annual budget for last many decades with modified names. No major structural or policy change has been proposed which is inevitable for doubling the farmers’ income.



Indian agriculture has only a meagre 2.62% growth.87% of the farmers are smallholders. And due to law of inheritance, the numbers of small holders are increasing every day. Heavy fragmentation of land is the breeding ground for vicious cycle of Indian agro value chain leading to an average production which is half the other Asian countries. Infact contribution of agriculture in national income has decreased to an appalling 16.5% with Rs 36,938 as the average annual income of the farmers.



The major thrust in the budget is on enhancement of agri export .But now India does an agro export of Rs 2.7 lacs crore which comprises only a little over 2.5% of the total basket of world agro trade.



‘ One crop one district’ policy  may however initiate the virtuous cycle towards better bargaining power of farmers and increasing agro exports, But to achieve this goal, Government needs to focus on supporting farmers for implementing homogeneous package of practise of the crops in export demand. Policies developing Fair average quality norms complying the export standard will be a real catalyst in realising the 2022 goal. Only logistic measures like Kisan train and warehouse promotion policy, credit and crop insurance proposed in this budget will not add much value to the agro ecosystem. And farmers will not be able to capitalize opportunities of eNAAM



On the other side of this bleak scenario, stand the growing opportunities for agriculture with shift of taste of emerging middle class societies of the world to fruits and vegetable dominant diet.



What is needed now is “out of box” ideas of products and services to resolve this critical lacuna of Indian agriculture and leverage the growing global opportunities. Agro start-ups could meet the need. More than 450 agro start-ups are working in India now but in a very un conducive ecosystem. Government policies should be framed to create supportive and facilitating environment for agro start-ups so that these endeavours may sustain and flourish and continue inventing disruptive solutions for productivity, quality, supply and price efficiency and marketability enhancement of crops of Indian farmers


मूंग उत्पादन की उन्नत तकनीक

भारत में मूंग (Moong) ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौषम की कम समय में पकने वाली अक मुख्य दलहनी फसल है| मूंग (Moong) का उपयोग मुख्य रूप से आहार में ...