Wednesday, January 1, 2020

आयुर्वेद में औषधि द्रव्य संग्रह के दिशा-निर्देश

आयुर्वेद में औषधि द्रव्य संग्रह के दिशा-निर्देश


आयुर्वेद " देवस्य प्रताप सिंह » दयानंदन मणि हर्बल औषधीय उत्पाद विभाग सीएसआईआर-केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ (उप्र)



के विद्वान और जानकार महानुभावों ने पौध सामग्री के संग्रह और एकत्रित करने के लिए कई दिशा-निर्देशों के बारे में बताया है, जिनकी इन औषधियों के गुणवत्तापूर्ण निर्माण के लिए परम आवश्यकता है। हमारे पूर्वजों ने पर्यावरण के बारे में विचार करते हुए पृथ्वी की प्राकृतिक वनस्पतियों की रक्षा करने हेत पौधों की सर्वोच्च शक्तियों के प्रभाव को पहचानते हए. मानव एवं अन्य समस्त जीव जंतओं के कल्याण के लिए प्राकतिक वनस्पतियों के उपयोग की महत्ता को प्रतिपादित किया हैवर्तमान समय में अत्यधिक वाणिज्यिक लाभ के लिए औषधीय पौधों का अधिकाधिक दोहन हो रहा है, परिणामस्वरूप आयुर्वेद के विशेषज्ञों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अधिकांश अतिमहत्वपूर्ण औषधीय पौधे विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गये है, जो कि बेहद चिंताजनक तथ्य है। महर्षि चरक ने औषधीय गुण प्रधान पौधों के संग्रह के संबंध में कुछ आवश्यक दिशा निर्देशों का निर्धारण किया है, जैसे कि ग्रहण करने वाला व्यक्ति मंगलाचार संपन्न, स्वच्छता एवं स्वच्छ विचारों के साथ, प्रचलित प्रथाओं का पालन तथा कल्याण की भावना रखने वाले को ही संबंधित औषधियों के संग्रह हेतु उचित बताया गया है। औषधीय गुण प्रधान पौधों का संग्रह और तैयार उत्पाद दोनों की सर्वोत्तम संभव गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रशस्त औषधियों के लक्षण एवं संग्रह करने हेतु निर्देश इस प्रकार हैं:


• द्रव्य अपने समुचित समय पर उत्पन्न हुए हों।


• द्रव्यों में जितनी ऊंचाई, मोटाई, चौड़ाई, होनी चाहिए उस प्रमाण से युक्त।


• रस, वीर्य, और गंध पूर्ण रूप से उपास्थित हों।


• औषधि के अकाल, धूप, अग्नि,जलवायु, एवं कृमि आदि के प्रभाव से गंध-वर्ण-रस-स्पर्श-प्रभाव नष्ट न हुए हों l


• यह बारिश, वायु या पानी से प्रभावित नहीं होना चाहिए।


• भूमि  अत्यधिक नमी रहित. कीडे से मक्त, जहरीला हथियार, अत्यधिक धूप, उच्च हवा, आग, और किसी भी प्रकार की बीमारी सेमुक्त होना चाहिए l


• पौध सामग्री सड़क के किनारों से एकत्र नहीं किया जाना चाहिए, अच्छी तरह से विकसित होना चाहिए।


• नवीन पौध सामग्री का संग्रह होना चाहिए और संग्रह के एक वर्ष के भीतर ही इसका उपयोग कर लिया जाना चाहिए।


 


पौधे के उपयोगी भाग के अनुसार संग्रह का समय


आयुर्वेद में औषधीय पौधों/ जड़ी-बूटियों की पहचान उनकी गंध, ऊंचाई, स्वाद, स्पर्श, उपस्थिति और अंततः परिपक्वता के आधार पर की जाती है। उत्तम दिशा में होने वाली औषधियों की नूतन शाखा और पत्रों को वसंत ऋतु में, मूल का ग्रीष्म या शिशिर ऋतु में, जबकि पुराने पत्ते हट कर नए पत्ते उग रहे हों, छाल, कंद और क्षीर का शरद ऋतु में, पुष्पों और फूलों का ऋतुओं के अनुसार और काण्ड सारों का हेमंत ऋतु में संग्रह करना चाहिए।आचार्य सुश्रुत ने औषधियों के संग्रह के सम्बन्ध में भिन्न विचार प्रदर्शित किया है। उन्होंने सम्पूर्ण वनस्पतियों को सौम्य/ शीत या आग्नेय/ ऊष्ण दो वर्गों में बांट दिया है। सौम्य वनस्पतियों का संग्रह सौम्य ऋतुओं और आग्नेय वनस्पतियों का संग्रह आग्नेय ऋतुओं वनस्पतिया का सग्रह आग्नेय ऋतुओं में लेने का विधान हैं। शरद, शिशिर,हेमंत को सौम्य और वसंत, ग्रीष्म, तथा वर्षा को आग्नेय ऋतु कहा जाता है। मूल रूप से सभी औषधीय पौधों _को अपनी शक्ति (Potency) के आधार पर दो प्रमुख समूहों में विभाजित किया जाता है।



संग्रहण अवधि


औषधीय पौधों के संग्रह के लिए सबसे अच्छी अवधि सितंबरनवंबर ऋतु के दौरान मानी गयी है, लेकिन 3000 मीटर से ऊपर के क्षेत्र में अगस्त-अक्टूबर ऋतु के दौरान ही संग्रह कर लेना उचित है, क्योंकि नवंबर माह की शुरुआत से ही बर्फ का गिरना शुरू हो जाता है। सदाबहार जंगलों से औषधीय पौधों और झाड़ियों का संग्रह मार्च से मईके के बीच ही उपयुक्त है, क्योंकि इस समय बहुत सी पादप प्रजातियों में फूलों के खिलने का समय होता है। पर्णपाती वनो में सर्दियों के मौसम में किसी भी तरह के औषधीय संग्रह नही करना चाहिए क्योंकि इस समय इन वनो के पादप अपना प अपनी पुरानी पत्तियो को त्याग कर नवीन पत्ते उगने लगते हैं।


जड़ों का संग्रहण: ग्रीष्म या शिशिर ऋतु में करना चाहिए। द्विवर्षी एवम् बहुवर्षी पादपो की जड़ों को प्रथम वर्ष की शरद या फिर दूसरे वर्ष की शुरुआत से पहले वसंत ऋतु में एकत्र कर लेना चाहिए, क्योंकि जड़ें द्विवर्षी एवम् बहुवर्षी पौधों के मुख्य सक्रिय तत्वों का प्रमुख भंडारण अंग हैं, और पौधे गर्मियों के दौरान ही अपने मुख्य सक्रिय अवयवों को जड़ों में भंडारित करते हैं।


पत्तियां सामान्यतः नवीन पत्तियां ही मुख्य रूप से एकत्र करनी चाहिए, क्योंकि नई पत्तियों में सर्वाधिक सक्रिय अवयव पाए जाते हैं। पत्तियों के संग्रह के समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वो सभी प्रकार के रोग, कीट आदि से रहित हों।


कंद का संग्रह: उसके पुष्प के आने के समय को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए, क्योंकि पुष्पों से उस प्रजाति की पहचान आसान हो जाती है। एक महत्वपूर्ण बात और है कि कंद की खुदाई के करते समय प्रायः गहरी खुदाई नही करना चाहिए ताकि ये दुबारा से फिर से उसी जगह पनप सकें।


फूल, फल और बीज: फूल, फल एवं बीजों का संग्रह उनकी उपलब्धता के अनुसार ही करना चाहिए।


छाल का संग्रह: वसंत ऋतु के शुरुआत में जब पौधों में नवीन पत्तियां आती हैं, या फिर शरद ऋतु में जब पौधे अपनी पुरानी पत्तियाँ गिरा देते हैं तब ही करना चाहिए। पौध छाल के संग्रह के दौरान इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए की छाल का संग्रह मुख्य तने की जगह उससे लगी हई मख्य शाखाओं से ही करना चाहिए, साथ ही साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि छाल का संग्रह शाखा या तने की संपूर्ण मुख्य परिधि दिशा-निर्देश से ना करके शाखा की लंबाई से किया जाना चाहिए जिससे की तने की बुद्धि को कोई क्षति ना हो।



औषधीय द्रव्यों के संग्रह के लिए सामान्य दिशानिर्देश


• ओस या बारिश से आच्छादित पत्तियों, फूल और फलों को औषधीय उपयोग हेतु एकत्र नहीं करना चाहिए। • पत्तियाँ जिनका रंग सामान्य से बदल गया हो या फिर उन पर कीटों का आक्रमण हुआ हो औषधीय उपयोग हेतु उनका संग्रह कदापि नही करना चाहिए। • पौधों की छाल का संग्रह नमी युक्त मौसम में करने से बचना चाहिए। • गोंद और रेजिन जैसे चिपचिपे पदार्थों का संग्रहण सूखे या ग्रीस्म ऋतु में ही करना उपयुक्त होता है। . औषधीय उपयोग में लाई जाने वाली सब्जियों से यथासंभव अनुपयुक्त पदार्थों को बाहर करने का प्रयत्न करना चाहिए। • औषधीय उपयोग हेतु पौधों के भूमिगत भागों जैसे जड़ों और कंद इत्यादि से मिट्टी आदि को पूरी तरह से हटाकर, साफ करके धोने के बाद ही प्रयोग करना चाहिए।



निष्कर्ष


औषधीय पौधे केवल मानव की आवश्यकताओं एवं लालच की पूर्ति का साधन ही नही हैं, वरन ये सभी अमूल्य औषधियाँ प्रकृति द्वारा प्रदत्त उन सच्चे साथियों की भाँति हैं, जिनके गुणों का उपयोग मनुष्यों और अन्य जीवों के स्वाथ्य की रक्षा करने के लिए अपरिहार्य रूप से किया जाता है। प्राचीन विद्वान स्पष्ट रूप से मानते थे कि अगर औषधियों को विधिसम्मत तरीके से संग्रह किया जाय तो इनमे विद्यमान इष्टतम औषधीय गुणों की प्राप्ति संभव हैभावी पीढ़ी के लिए यह अत्यधिक चिंता और विचार का विषय है कि वर्तमान परिदृश्य में सामाजिक और पारस्परिक लाभ को दरकिनार करते हुए केवल व्यावसायिक लाभ और लोभ के कारण मनुष्यों द्वारा अंधाधुंध दोहन के परिणाम स्वरूप औषधीय महत्व के अधिकांश अति महत्वपूर्ण पादप विलुप्त हो गये हैं या फिर पूर्णतः विलुप्त होने की कगार पर हैं। अतः प्रकृति में उपस्थित इन पारंपरिक जड़ी बूटियों का केवल आवश्कता पड़ने पर विधिसम्मत तरीके से ही प्रयोग किया जाना चाहिए।


 


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