जैविक संतरा उत्पादन की उन्नत तकनीक
भूमि का चुनाव संतरे की बागवानी हेतु सर्वप्रथम मिट्टी परीक्षण अवश्य करवाएँ, जिसके द्वारा हम मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों का अध्ययन करके भविष्य आने वाली समस्याओं का निदान करके बगीचे के उत्पादन एवं आयु में वृद्धि कर सके।
बगीचे की स्थापना • गड्ढे का आकार : 75x75x75 से.मी. • पौधे से पौधे की दूरी : 6x6 मी. • गड्ढे भरने के लिए 20 किलो पकी हुई गोबर की खाद के साथ 1 किलो नीम खली तथा 20 ग्राम ट्राईकोडर्मा कल्चर का प्रयोग अवश्य करें।
संतरे के पौधे • संतरे के रोग मुक्त पौधे संरक्षित पौधशाला से ही लिए जाने चाहिये• रंगपुर लाईम या जम्बेरी मूलवृत्त तैयार कलमें के पौधे लेने चाहिये• कलम सीधी व ऊँचाई 60 सेमी तथा मूलवृत्त पर बडिंग जमीन से 25 सेमी की ऊँचाई पर हो• जड़ें स्वस्थ होना चाहिये।
जैव उर्वरकों एवं जैविक खादों का प्रयोग • समस्त प्रकार के जैव उर्वरकों जैसे एजोटोबेक्टर, पीएसबी, पोटाश घोलक जीवाणु, जिंक एवं सल्फर घोलक जीवाणु की संख्या वृद्धि करके जीवामृत के माध्यम से छोड़ें या गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करें। • गोबर खाद या केंचुआ खाद की मात्रा प्रथम वर्ष की आयु से लेकर पाँच वर्ष की पेड़ की आयु होने तक 10 किलो प्रतिवर्ष बढ़ाते जाएँ तथा पाँच वर्ष के बाद 5060 किलो प्रति पेड़ निर्धारित कर दें।
जल प्रबंधन • ड्रिप इरीगेशन सबसे उपयुक्त है। गर्मी में सिंचाई 4-6 दिन के अंतराल से करें• ठंड में सिंचाई 10-15 दिन के अंतराल से करें। पानी पेड़ के तने को लगना नहीं चाहिये। खरपतवार नियंत्रण • निंदाई-गुड़ाई के माध्यम से ही नियंत्रित करें।
कीट प्रबंधन • समस्त प्रकार के रस चूसक कीटों एवं इल्लियों के लिए 10000 पीपीएम नीम विलयन (फायर) उपयोग करें। (मात्रा : 2-3 मिली/है.)
रोग प्रबंधन • वर्ष में कम से कम दो बार तने पर बोर्डो पेस्ट लगाएँ। • ताम्बे के बर्तन में 15 दिन रखी छाछ का प्रयोग अवश्य करें। (मात्रा : 1 ली/पम्प)