कृषि उत्पादों पर हो आत्मनिर्भर
इस वर्ष पूरे भारत में मानसून की भरपूर बारिश हुई है। कुछ स्थानों पर अतिवृष्टि और कुछ स्थानों पर औसत से कम बारिश को अगर नजरअंदाज करें तो सम्पूर्ण भारत में मानसून की औसत स्थिति संतोषजनक है। 30 सितंबर को दक्षिणपश्चिम मानसून की आमतौर पर बिदाई हो जाती है लेकिन इस बार सम्पूर्ण सितंबर माह में बारिश का क्रम जारी रहाकहीं-कहीं बाढ़ और अतिवृष्टि से फसलों को जरूर हानि हुई है, फिर भी कुल मिलाकर परिदश्य अच्छा है। सारे जलस्रोत लबालब भर चुके हैं। सितंबर अंत तक यह जो बारिश का क्रम चल रहा है, इससे रबी सीजन के लिए खेतों में पर्याप्त नमी रहेगी और सिंचाई के लिए नदियों व जलाशयों में जल की कमी नहीं होगी। मध्यप्रदेश के केवल शहडोल जिले में औसत से कम बारिश हुई है, शेष 51 जिलों में या तो सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश हुई है। 51 जिलों में औसत 42 इंच से अधिक बारिश हुई है। मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक बारिश का क्रम जारी रह सकता है। प्रदेश में बंगाल की खाड़ी से नमी आ रही है इसलिए वर्षा का क्रम रुक-रुक कर जारी रहेगा। इंदौर में 50 इंच और भोपाल में 60 इंच से अधिक बारिश हो चुकी है। जिन जिलों में अतिवृष्टि और बाढ़ से फसलें नष्ट हो गई हैं, वहाँ के कृषकों की दरकार है कि सही आकलन कर उन्हें मुआवजा दिया जाए। कर्ज माफ किया जाए। अतिवृष्टि ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया है। एक तरह से उनकी माँग वाजिब है। अगर सरकार ईमानदारी से क्षति का आकलन करवाकर नुकसान की भरपाई करती है या बीमे की राशि किसानों को दिलवाती है तो वे रबी में मेहनत कर अपना और प्रदेश का भविष्य सुधार सकते हैं। हमारे देश में खेती बड़े जोखिम का धंधा है। कभी सूखे तो कभी अतिवृष्टि से फसलें चौपट हो जाती हैं। कभी ठंड और पाला पड़ने से सारी मेहनत बर्बाद हो जाती है। हर साल कीटों के कारण ही 45 हजार करोड़ रुपये की फसलें बर्बाद हो जाती हैं। अगर इस बर्बादी पर हम नियंत्रण पा लें तो हम चीन को पीछे छोड़कर नंबर वन बन सकते हैं। साथ ही किसानों की आय दोगुनी करने का प्रधानमंत्री का स्वप्न भी साकार कर सकते हैं। हम कृषि उत्पादन में भले ही विश्व में दूसरे स्थान पर हैं मगर निर्यात में फिड्डी हैं। कृषि उत्पादों के निर्यात में हमारी हिस्सेदारी महज दो प्रतिशत है। अगर निर्यात बढ़ता है तो उसका लाभ किसानों को मिल सकता है। इसके लिए हमें कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल भी बढ़ाना आवश्यक है। अभी जो उत्पादन होता है उससे हमारी आबादी की जरूरत ही पूरी होती है। कृषि का रकबा बढ़ने पर अतिरिक्त उत्पादन का निर्यात संभव हो सकता है। वर्तमान में देश में 46.70 मिलियन हैक्टेयर भूमि बंजर है। गत दिनों नई दिल्ली सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाने की घोषणा की है। इस लक्ष्य की सफलता पर ही देश की कृषि और कृषकों का भविष्य निर्भर है। उम्मीद करें कि हम कृषि भूमि का रकबा बढ़ाकर उत्पादन में इजाफा करें और अपना निर्यात बढ़ाएँ। जैसी आत्मनिर्भरता गेहूँ, चावल और दलहनी फसलों के उत्पादन में हासिल की है वैसे ही तिलहन में भी हासिल करें ताकि तेलों के आयात की आवश्यकता न पड़े।