Tuesday, October 1, 2019

आलू की जैविक खेती

आलू की जैविक खेती


आलू की खेती भी लगभग पुरे "विश्व में की जाती है। आलू की सम्भावनाओं को देखते हुए, आलू की जैविक खेती किसानो के लिए वरदान साबित हो सकती है। क्योंकि आलू पौष्टिक तत्वों का खजाना है, इसमें सबसे प्रमुख स्टार्क, जैविक प्रोटीन, सोडा, पोटाश और विटामिन एव डी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है। जो मानव शरीर के लिए आवश्यक है। हालाँकि हमारे देश में भी आलू की जैविक खेती बड़े क्षेत्रफल में की जाती है। परन्तु अच्छी तकनीकी तथा जानकारी के आभाव में आलू उत्पादक इसकी अच्छी पैदावार नही ले पाते है। इस लेख द्वारा किसान भाइयों को उन सभी उपायों से अवगत कराना चाहेगे। जिनको उपयोग में लाकर कृषक आलू की जैविक खेती अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है।



जैविक खेती हेतु जलवायु - आलू कि खेती ठन्डे मौसम में जहाँ पाले का प्रभाव नहीं होता है, सफलता पूर्वक कि जा सकती हैआलू के कंदों का निर्माण 20 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर सबसे अधिक होता है। जैसे जैसे तापक्रम में वृद्धि होती जाती है, वैसे ही कंदों का निर्माण में भी कमी होने लगती है तथा 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम होने पर कंदों का निर्माण रुक जाता है। पौधों की बढ़वार के लिए लम्बे दिनों कि अवस्था तथा कंद निर्माण के लिए छोटे दिनों कि अवस्था आवश्यक होती है। हमारे देश में विभिन्न भागों मे उचित जलवायु कि उपलब्धता अनुसार किसी न किसी भाग में पुरे साल आलू कि खेती होती है।


उपयुक्त भूमि - आलू अलावा सभी प्रकार की भूमियों में उगाया ज सकता है, परन्तु जीवांशयुक्त रेतीली दोमट या दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम रहती है। भूमि में उचित जल निकास का प्रबंध अतिआवश्यक है, नही तो कंदों के निर्माण में कठिनाई होती है, कंद विकृत तथा अविकसित हो जायेंगे और उन पर दरारे पड़ जाएगी। इसकी खेती के लिए मिटटी का पी एच मान 5.2 से 6.5 सर्वोतम माना गया है।


आलू की उन्नत किस्में -



  • अगेती किस्में- कुफरी चंदरमुखी, कुफरी अलंकार, कुफरी पुखराज, कुफरी ख्याती, कुफरी सूर्या, कुफरी अशोका, कुफरी जवाहर, जिनकी पकने की अवधिआलू 80 से 100 दिन है।

  • मध्यम समय वाली किस्में- कुफरी बादशाह, कुफरी ज्योति, कुफरी बहार ,कुफरी लालिमा, कुफरी सतलुज, कुफरी चिप्सोना- 1, कुफरी चिप्सोना- 3, कुफरी सदाबहार, कुफरी चिप्सोना- 4, कुफरी पुष्कर जिनकी पकने की अवधि 90 से 110 दिन है।

  • देर से पकने वाली किस्में- कुफरी सिंधुरी कुफरी फ्राईसोना और कुफरी बादशाह जिनकी पकने की अवधि 110 से 120 दिन है।

  • 2 संकर किस्में- कुफरी जवाहर (जे एच- 222), 4486- ई, जे एफ- 5106, कुफरी सतुलज (जे आई 5857) और कुफरी अशोक (पी जे- 376) आदि है।

  • विदेशी किस्में- कुछ विदेशी किस्मों को या तो भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल पाया गया है या अनुकूल ढाला गया है, जो इस प्रकार है, जैसे- अपटूडेट, क्रेग्स डिफाइन्स और प्रेसिडेंट आदि है। खेत की तैयारी .


खेत की तैयारी - आलू के कंद मिटटी के अन्दर तैयार होते है इसलिए मिटटी का भुरभुरा होना नितांत आवश्यक है। पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करे दूसरी तथा तीसरी जुताई देशी हल या हेरों से करनी चाहिएयदि खेत में ढेले हों तो पाटा चलाकर मिटटी को भुरभूरा बना लेना चाहिएबुवाई के समय मिटटी में नमी का पर्याप्त होना अनिवार्य है। यदि खेत में नमी की कमी हो तो खेत में पलेवा करके बुवाई करना चाहिए।


फसल-चक्र - आलू की फसल शीघ्र तैयार हो जाती है। कुछ किस्में तो 70 से 90 दिन में ही तैयार हो जाती है। इसलिए फसल विविधिकरण के लिए यह एक आदर्श नकदी फसल है। मक्का-आलू-गेहूं, मक्का-आलू- मक्का, भिन्डी-आलू-प्याज, लोबिया आलू-भिन्डी आदि फसल प्रणाली को देश के विभिन्न हिस्सों में अपनाया जा रहा हैl


बुआई का समय - आलू की जैविक खेती हेतु बुआई का समय किस्म और जलवायु पर निर्भर करता है। वर्ष भर में आलू की तीन फसलें ली जा सकती है। आलू की अगेती फसल (सितम्बर के तीसरे सप्ताह से अक्टूबर प्रथम सप्ताह तक), मुख्य फसल (अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवम्बर के द्वितीय सप्ताह तक) और बसंतकालीन फसल (25 दिसम्बर से 10 जनवरी तक) ली जा सकती है। जल्दी तैयार हो ने वाले आलू जब सितम्बर से अक्टूबर में बोये जाते है, तब आलू बिना काटे ही बोये जाने चाहिए। क्योकि काटकर बोने से ये गर्मी के कारण सड़ जाते है, जिससे फसल पैदावर में भारी हानि होती है। अल्पकालिन आलू सितम्बर में बो कर नवम्बर में काटा जा सकता है।


बीज का चुनाव - आलू की खेती में बीज का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि आलू उत्पादन में कुल लागत का 40 से 50 प्रतिशत खर्च बीज पर आता हैं। इसलिए आलू का बीज ही उत्पादन का मूल आधार है। शुद्ध किस्म का, उपजाऊँ, कीट व रोग मुक्त, कटा, हरा या सड़ा न हो। स्वच्छ तथा सुडोल बीज ही प्रयोग में लाना चाहिए। आलू के बीज की मात्रा आलू की किस्म, आकार, बोने की दूरी तथा भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती हैl


अगेती फसल में पूरा आलू बोते हैं, टुकड़े नहीं काटे जाते, क्योंकि उस समय भूमि में नमी अधिक होती है, जिससे कटे टुकड़ों के सड़ने की सम्भावना रहती है। बड़े आलू को टुकड़ों में काट लेते हैं, एक टुकड़ें में कम-से-कम 2 से 3 आँखें रहनी चाहिये। कटे हुए टुकड़े देर से बोई जाने वाली फसल में प्रयोग करते हैं। क्योंकि उस समय इनके सड़ने की सम्भावना नहीं रहती हैइसके अलावा काटने से आलुओं की सृषुप्तावस्था समाप्त हो जाती है तथा अंकुरण शीघ्र होने लगता है।


बीज का आकार और दूरी - आलू की जैविक खेती हेत स्वच्छ बीज 30 ग्राम से 125 ग्राम वजन के होना चाहिए। इनकी मोटाई 25 से 65 मिलीमीटर हो सकती है। इससे कम या अधिक आकार या भार का बीज आर्थिक दृष्टिकोण से लाभप्रद नहीं है, क्योंकि अधिक बड़े टुकड़े बोने से अधिक व्यय होता है और कम आकार या भार के टुकड़े बोने से पैदावार में कमी आती है। जीवांश युक्त उपजाऊ भूमि में छोटे बीजो को पास-पास बोना अच्छा रहता है। कमजोर भूमि में मोटा बीज बोने में अधिक अन्तर रखाना लाभकारी होता है। आलू बोने की गहराई बीज के आकार, भूमि की किस्म तथा जलवायु पर निर्भर करती है। बलुई भूमि में गहराई 10 से 15 सेंटीमीटर तथा दोमट भूमि में 8 से 10 सेंटीमीटर गहराई पर बुआई करनी चाहिए। कम गहराई पर बोने से आलू सूख जाते हैं तथा अधिक गहराई पर नमी की अधिकता से बीज सड़ सकता है।


बीज उपचार - शीतगृह से तुरन्त निकाले गये आलू को बोने से अंकुरण देर से और एक समान नहीं होता है। इसलिए बीज वाले आलू को शीत गृह से बुआई के 10 से 15 दिन पहले निकाल कर ठंडी तथा छायादार जगह पर फैला देना चाहिए। जिससे आलू में अंकुर फूट जाते हैं और फसल अंकुरण अच्छा तथा एक समान होगा। आलू की जैविक खेती हेतु बीज जनित व मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को जीवामृत और टराईकोडरमा विरीडी 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल के हिसाब से 15 से 20 मिनट के लिए भिगो कर रखें. बिजाई से पहले छाँव में सूखा ले। ध्यान दें, टराईकोडरमा क्षारीय मृदाओं के लिए उपयोगी नही है।


बुआई की विधियाँ - आलू की बुआई की अनेक विधियाँ प्रचलित हैं, जो कि भूमि की किस्म, नमी की मात्रा, यंत्रों की उपलब्धता, क्षेत्रफल इत्यादि पर निर्भर करती है। आलू लगाते समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है, लगाने के तुरन्त बाद सिंचाई करना उचित नहीं रहता हैं। आलू बुआई की विधियां इस प्रकार हैजैसे



  • जैसेसमतल खेत में आलू बोनाहल्की दोमट मिटटी के लिए यह सर्वोत्तम विधि है। रस्सी की सहायता से निश्चित दूरी पर कतारे बनाकर देशी हल या कल्टीवेटर या प्लान्टर से खुड बना ली जाती है। इन्हीं कँडों में निश्चित दूरी पर आलू बो दिये जाते हैं। बोने के पश्चात् आलुओं को पाटा चलाकर मिट्टी से ढंक दिया जाता है। समतल खेत में आल बोकर मिटटी चढ़ाना- इस विधि में खेत में 60 सेंटीमीटर की दूरी पर कतार बना ली जाती है। इन कतारों में 15 से 25 सेंटीमीटर की दूरी पर आलू के बीज कंद रख दिये जाते हैं। इसके बाद फावड़े से बीजों पर दोनों और से मिटटी चढ़ा दी जाती है। हल्की मिटटी में बनी हुई कतारों पर 5 सेंटीमीटर गहरी डें बनाकर आलू के बीज बो दिये जाते हैं तथा पुनः मिट्टी चढ़ा दी जाती है।


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