Sunday, November 25, 2018

जैविक खेती में देशी बीजों की उपयोगिता

जैविक खेती में देशी बीजों की उपयोगिता


देशी बीजों में गुणधर्मिता विशिष्ट प्रकार की होती है। इन्हें कम से कम खाद, दवाइयों एवं जल की आवश्यकता होती है। इनकी प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है जिसके कारण ये बीमारियाँ एवं कीटों से लड़ने की क्षमता ज्यादा रखते है। इनके द्वारा प्राप्त उत्पादों की पोषकता कई गुना अधिक होती है।


हरित क्रांति के साथ ही रायायनिक खादों एवं कीटनाशकों का चलन प्रारंभ हुआ तथा हाईब्रिड बीजों की कई प्रकार की वेराइटी भी हमारे समाने आई, इन बीजों की उत्पादन क्षमता तो काफी अच्छी थी परन्तु साथ ही साथ रासायनिक खादों, कीटनाशकों एवं जल की खपत कई गुना ज्यादा थी तथा पौधों की प्रतिरोधक क्षमता भी कम रहती हैआज इसी कारण निमाड क्षेत्र का एक ज्वलंत उदाहरण हमारे सामने आया है। निमाड़ क्षेत्र मिर्च उत्पादन के लिए प्रासिद्ध है लेकिन गतवर्ष लगभग 70 प्रतिशत मिर्च की फसल वायरस से ग्रसित हो गई उनमें कुकडा रोग का संक्रमण इतना अधिक था कि किसान अपने ही खेत से फसलों को बाहर करने के लिए मजबूर हो गया।



इतनी भयावह अवस्था आने के बावजूद भी हम कभी ये नहीं सोचते है कि इन सभी किसानों ने रासायनिक खादों का प्रयोग किया था कीटनाशकों का भी निर्देशानुसार पालन किया था फिर भी ये थ्रिव्स एवं सफेद मक्खी पर नियंत्रण नहीं कर सके और पौधे संक्रमित होते चले गए। ऐसा इसलिए ये किसान लगातार रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का अव्यवस्थित रूप से उपयोग करते है जिसके कारण मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक रूप चलने वाली प्रक्रिया पर बहुत बुरा प्रभाव पडा है जिसके कारण भूमि का पीएच मान लगातार बढ़ता गया, कार्बनिक पदार्थों की मात्रा काफी कम हो गई जिससे जैविक कार्बन का प्रतिशत स्तर काफी गिर गया इस अवस्था में पौधे भी कमजोर हो जाते है तथा स्वयं की प्रतिरोधक क्षमता हो जाने पर हानिकारक सूक्ष्मजीवों से लड नहीं पाते है। और जब उनका द्विगणन प्रारंभ होकर एक ऐसा अवस्था में पहुंच जाता है जब वे और ज्यादा प्रभावी हो जाते है। फिर इस अवस्था के बाद इनकी रोकथाम असंभव हो जाती हैयदि भूमि का पीएच संतुलित होता है। तो कम पीएच पर यह वायरस अपनी प्रभाविता खो देता एवं निष्क्रिय हो जाता परन्तु पीएच मान अधिक होने कारण ऐसा नहीं हो पाया और फसलें नष्ट हो गईl


इस उदाहरण से शायद अब शायद उन लोगों को सीख लेना चाहिए कि जो ये मानते है कि रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के बिना खेती नहीं हो सकती। ये सभी किसान जो इस समस्या से ग्रसित हुए हैं, सभी रासायनिक खेती ही करते है। देशी बीजों में गुणधर्मिता विशिष्ट प्रकार की होतीहै। इन्हें कम से कम खाद, दवाइयों एवं जल की आवश्यकता होती है। इनकी प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है जिसके कारण ये बीमारियाँ एवं कीटों से लड़ने की क्षमता ज्यादा रखते है। इनके द्वारा प्राप्त उत्पादों की पोषकता कई गुना कता कई गुना अधिक होती है। ये स्वास्थ्य की दृष्टि से भी फायदेमंद होता है। जैविक आनज की या फलों की वाट को कोई तोड नहीं है। यह अनाज पेट के रोगों के लिए अतिउपयोगी है। आने वाला समय जैविक खेती का है। यह बात हम सभी को समझना जरूरी है। रासायनिक आदानों का इस्तेमाल करने का नतीजा क्या होता है। यह हमारे किसान भाई समझा चुके है। जैविक खेती में ही हमारी आने वाली पीढियों की भलाई है। तो आइए मिलकर एक साथ चले जैविक खेती की ओर...!


जैविक खेती क्यों


• जैविक खेती, खेती करने की वह कला है जिसके अन्तगर्त मानव, पश-पक्षी, कीडे-मकोडे, भमि, पानी. वाय के साथ विभिन्न अजैविक घटकों के बीच संतुलन बना रहता है।


• जैविक खेती के द्वारा जहां एक और मनुष्य आत्मनिर्भर बनते हैं, वही दूसरी और यह पर्यावरण के लिए भी हितैषी है। • वर्तमान की कृषि पध्दति व रसायनिक खेती की अपेक्षा जैविक खेती कम लागत वाली व स्थान विशेष के लिए अनुकूल है।


• जैविक खेती के द्वारा रोजगार के अतिरिक्त अवसर भी प्राप्त होते हैं, क्योंकि इसमें किसान की बाजार पर निर्भरता कम होती है, जिससे वह स्थानीय रोजगार की बढ़ावा देने में सहायक है। परिणामस्वरूप देश की एक बहुत बड़ी समस्या पलायन को जैविक खेती तकनीक को अपनाकर कुछ हद तक कम किया जा सकता है। .चूँकि जैविक खेती पध्दति को .चूकि जावक खता पध्दात का अपनाकर कम लागत में अधिक उपज प्राप्त किया जाता है, इससे कृषक बंधु स्वावलंबी बन सकते है। .गांवों में उपलब्ध कूड़ा-कचरे से कषि अवशेषों का उचित प्रबंधन जैविक खेती तकनीक में हो जाता है इसलिए इस प्रकार के कड़े-कचरे से होने वाले हानिकारक प्रभाव को भी कम किया जा सकता है।


• जैविक खेती तकनीक को अपनाकर मित्र कीटों का संरक्षण किया जा सकता है,प्राकृतिक संतुलन को सरंक्षित किया जा सकता है।


• जैविक खेती से भूमि में कार्बेनिक तत्वों की मात्रा अधिक हो जाती है, जिससे भूमि की जलधारण करने की क्षमता बढ़ती है। परिणामस्वरूप कम वर्ष होने व अन्य विपरीत परिस्थितियों के प्रति भूमि सहनशील होती है।


• खेत व उसके आसपास के क्षेत्रों में प्राकृतिक जैवविविधता की सुरक्षा होती है।


• जैविक कषि को अपनाने से उत्पाद में स्वाद व पौष्टिकता की वृध्दि होती है, साथ ही भूमि की उत्पादकता में भी वृध्दि होती है। . भमि की उर्वरता दीर्घकालीन तक बनी रहती है।


• स्थानीय कृषि क्रियाओं तथा उर्जा नवीनीकरण स्त्रोतों का उपयोग होने के साथ ही नवीन रोजगार का सृजन होता हैl


मूंग उत्पादन की उन्नत तकनीक

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