Sunday, March 25, 2018

जैविक उत्पादों से कीट एवं रोगों का प्रबंधन

जैविक उत्पादों से कीट एवं रोगों का प्रबंधन


फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले "कीट एवं सूक्ष्म जीव वास्तव में प्रकृति के द्वारा बनाई गई खाद्य श्रृंखला का ही भाग है। लेकिन ये हमारे द्वारा उगाई जाने वाली फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं इसलिए इन्हें फसलों का शत्रु माना जाता है। कीट व्याधियों एवं पादप रोगों के कारक समान ही होते हैं। जैसे पौधे एवं _ भूमि में जल असंतुलित मात्रा में होना। पोषक तत्वों में असंतुलन, पौधों में कीट रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का कम होना, एक ही फसल बार-बार लेना, फसल चक्रण न होना। इसके अलावा जो रासायनिक कीटनाशकों एवं रोगनाशकों का उपयोग किया जाता है उनका केवल 1 प्रतिशत ही कीट को मारने के काम आता है या रोग को नियंत्रित करने के काम आता है। बाकी बचा 99 प्रतिशत पौधों में और पर्यावरण में रह जाता है। यह रसायन हमारी खाद्य श्रृंखला में आ जाते हैं जिसके कारण हमें कई प्रकार के असाध्य रोगों का सामना करना पड़ रहा है एवं पर्यावरण भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। अतः हमें ऐसे विकल्पों पर काम करना चाहिये जिनसे हमारी फसलें भी सुरक्षित रहें और पर्यावरण भी। इसके विकल्प के रूप में हमारे सामने जैविक कीटनाशक एवं रोगनाशक उपलब्ध हैं जिनका उपयोग हम कर सकते हैं एवं इसके लिए समन्वित प्रयास एकसाथ करने चाहिये। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण जैविक कीटनाशकों एवं रोगनाशकों के बारे में जानकारी उपलब्ध है। जैविक कीटनाशक काटनाशक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं :


सूक्ष्म जीव आधारित एवं वनस्पति कीटनाशक



  1. बिबेरिया बासीआना : यह एक कवक (फफूंद) है। इसमें निर्मित उत्पाद पावडर एवं द्रव आधारित होते हैं। यह कवक मुख्य रूप से हेलिकोवर्क, स्पोडोण्टेरा, सफेद मक्खी , डायमंड बैक गोथ, मेरी बोस, रूट प्रब्स का सभी अवस्था में नियंत्रण करती हैयह कवक कुछ ऐसे पाचक एंजाइम्स का स्रावण करती है जिसमें कि कीट का बाहरी आवरण कमजोर हो जाता है तथा कवक का संक्रमण कीट के शरीर के अंदर तक हो जाता है एवं यह कीट के चारों ओर से जकड़ लेती है व कीट की मृत्यु हो जाती है।  प्रयोग विधि : छिड़काव- 50 ग्राम पावडर या 30 मिली द्रव आधारित फार्मुलेशन 15 लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें। मृदा उपचार : 2 किग्रा पावडर या 1 लीटर फार्मुलेशन को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर बुरकाव करें।

  2. मेटरीसीयम एनिसोप्ली : यह एक फफूंद है। यह भी पावडर तथा लिक्विड फार्मुलेशन में उपलब्ध है। इनका उपयोग मुख्य रूप से दीमक, व्हाइट प्रब्स, एफिड,जेसिड, फ्रूट क्लाईस का समस्त अवस्था में नियंत्रण करता है।प्रयोग विधि : छिड़काव- 50 ग्राम पावडर या 30 मिली द्रव आधारित फार्मुलेशन 15 लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें। मृदा उपचार : 2 किग्रा पावडर या 1 लीटर फार्मुलेशन को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर बुरकाव करें।

  3. बर्टोसीलियम लेकानी : एवं लिक्विड फार्मुलेशन में उपलब्ध है। इनका उपयोग मुख्य रूप से मिलीबग, थ्रिप्स, व्हाइट फ्लाई, एफिड, स्केल इन्सेक्ट्स का इन्सेक्टस का समस्त अवस्था में नियंत्रण करता है। प्रयोग विधि : छिड़काव- 50 ग्राम पावडर या 30 मिली द्रव आधारित फार्मुलेशन 15 लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें। मृदा उपचार : 2 किग्रा पावडर या 1 लीटर फार्मुलेशन को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर बुरकाव करें।

  4. बेसलस युरिनजिएन्सिसः यह एक जीवाणु (बैक्टीरिया) है यह भी पावडर एवं लिक्विड फार्मुलेशन में उपलब्ध है। इनका उपयोग मुख्य रूप से इल्लियों के नियंत्रण के लिए किया जाता है। किया जाता है। प्रयोग विधि : छिड़काव- 50 ग्राम पावडर या 30 मिली द्रव आधारित फार्मुलेशन 15 लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें। मृदा उपचार : 2 किग्रा पावडर या 1 लीटर फार्मुलेशन को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर बुरकाव करें।

  5. पेसिलोमायसीस सिलेसीनस : यह एक फफूंद है। यह पावडर फार्मुलेशन में उपलब्ध है। यह मुख्य रूप से निमेटोड्स (सूत्रकृमियों) के नियंत्रण में अति उपयोगी है। यह मेलिडोमाइनी स्पी. के निमेटोड्स को जो कि मिर्च, टमाटर, बैंगन, प्याज, भिण्डी, पपीता को नियंत्रित करता है। इसके अलावा रेनिफार्म निमेटोड (रोटीलेंकुलम स्पी.) मिर्च व पपीता, नीम्ब एवं केले में भी अति उपयोगी है। प्रयोग विधि : छिड़काव- 50 ग्राम पावडर या 30 मिली द्रव आधारित फार्मुलेशन 15 लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें। मृदा उपचार : 2 किग्रा पावडर या 1 लीटर फार्मुलेशन को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर बुरकाव करें।

  6. अर्टीसीलियम क्लेमाईडोस्पोरियम : यह एक क्लेमाईडोस्पोरियम : यह एक फफूंद है। यह पावडर फार्मुलेशन में उपलब्ध है। इनका उपयोग मुख्य रूप से निमेटोड्स के अंडों को नियंत्रित करने में अति उपयोगी है। प्रयोग विधि : छिड़काव- 50 ग्राम पावडर या 30 मिली द्रव आधारित फार्मुलेशन 15 लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें। मृदा उपचार : 2 किग्रा पावडर या 1 लीटर फार्मुलेशन को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर बुरकाव करें।

  7. हिरमटेला थीम्पसोनाई : यह एक फफूंद है। यह पावडर एवं लिक्विड फार्मुलेशन में उपलब्ध है। यह मुख्य रूप से समस्त प्रकार के माईट्स को नियंत्रित करने के काम आता है।प्रयोग विधि : छिड़काव- 50 ग्राम पावडर या 30 मिली द्रव आधारित फार्मुलेशन 15 लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें। मृदा उपचार : 2 किग्रा पावडर या 1 लीटर फार्मुलेशन को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर बुरकाव करें।


सूक्ष्म जीव आधारित फफूंदनाशक एवं रोगनाशक



  1. ट्राईकोडर्मा विरीडी एवं ट्राइकोडर्मा हारजीएनम : यह एक मित्र फफूंद है जो कि पावडर एवं लिक्विड फार्मुलेशन में उपलब्ध है। यह मुख्य रूप से भूमि जनित फफूंद रोग जैसे जड़ गलन, डरवटा, तना गलन, झुलसा व अन्य भूमि जन्य रोगों के जैविक नियंत्रण में प्रभावीहै। कई प्रकार की हानिकारक फफूंदें जैसे फ्युजेरियम, राइजोक्टोनिया, स्कलेरोशीयम, वर्टीसीलियम, मेक्रोकोमिना, अल्टरनेरिया, हेलमिंथोस्पोरियम, पाईथियम, फाइटोकथोरा आदि को प्रभावी रूप से नियंत्रित करती है। प्रयोग विधि : बीजोपचार 10 ग्राम/किग्रा बीज या 1.0 मिली/किग्रा बीज। मृदा उपचार : 2 किग्रा/100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ उपयोग करें। 

  2. .स्पुडोमोनास कलोरोसिसः यह एक जीवाणु है। यह भी पावडर एवं लिक्विड फार्मुलेशन में उपलब्ध है। यह विभिन्न प्रकार की भूमि जनित रोगों एवं पर्णीय रोगों का प्रभावी रूप से नियंत्रण करता है। प्रयोग विधि : बीजोपचार: 10 ग्राम/किग्रा बीज या 1.0 मिली/किग्रा बीज। मृदा उपचार : 2 किग्रा/100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ उपयोग करें।  पर्णीय छिड़काव: 50 ग्राम/15 लीटर पानी या 25 मिली/ 15 लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर छिड़काव करें। 

  3. बेसिलस सबटीलिस : यह एक जीवाणु है। यह पावडर एवं लिक्विड फार्मुलेशन में उपलब्ध हैयह पावडरी मिल्ड्यु, डाऊनी मिल्ड्यु एवं स्केब को नियंत्रित करता है। प्रयोग विधि : प्रयोग विधि : बीजोपचार: 10 ग्राम/किग्रा बीज या 1.0 मिली/किग्रा बीज। मृदा उपचार : 2 किग्रा/100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ उपयोग करें।  पर्णीय छिड़काव: 50 ग्राम/15 लीटर पानी या 25 मिली/ 15 लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर छिड़काव करें। 

  4. एम्किलोग्रायसिस क्वीसकेलिस : यह एक फफूंद हैयह पावडर व लिक्विड फार्मुलेशन में उपलब्ध है। यह पावडरी मिल्ड्यु को नियंत्रित करता प्रयोग विधि : प्रयोग विधि : बीजोपचार: 10 ग्राम/किग्रा बीज या 1.0 मिली/किग्रा बीज। मृदा उपचार : 2 किग्रा/100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ उपयोग करें।  पर्णीय छिड़काव: 50 ग्राम/15 लीटर पानी या 25 मिली/ 15 लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर छिड़काव करें। 


वानस्पतिक कीटनाशक एवं रोगनाशक


आमतौर पर हम कई प्रकार के औषधीय महत्व के पौधों का उपयोग करके कीटों एवं पादप रोगों का नियंत्रण कर सकते हैं। इसमें प्रमुख रूप से नीम, करंज, आकड़ा, नरोड़ी या बेशरम, लहसुन, मिर्च का उपयोग कर सकते हैं। इन सभी की 5 किलो की मात्रा लेकर 25 लीटर गौमत्र एवं 25 लीटर पानी उबालें। जब इसकी मात्रा आधी रह जाए तब इसे ठंडा करके इसके मिश्रश्रण को 250 मिली/15 लीटर पानी में मिलाकर पीय छिड़काव करें। यह समस्त प्रकार के कीटों एवं रोगों का नियंत्रण करता है।



जैविक खेती करने के पहले जैविक सोच अपनाएँ

जैविक खेती करने के पहले जैविक सोच अपनाएँ


पर्यावरणीय संतुलन खेती के लिए अति आवश्यक है। पिछले कुछ वर्षों से जिस तकनीक ने हमारे किसान भाई खेती कर रहे हैं वो उन्हें फायदा पहुँचाने के साथ नुकसान भी पहँचा रही है। क्योंकि लगातार रासायनिक उत्पादों का प्रयोग करने से जैव विविधता पूरी तरह से नष्ट होती जा रही है। हमने मुख्य रूप से उन लाभदायक पेड़-पौधों, सूक्ष्म जीवों, पक्षियों, अन्य प्राणियों को हमारे कृषि क्षेत्रों से बाहर कर दिया है जो कभी हमारे कृषि क्षेत्रों को अच्छी उत्पादकता के साथ सुरक्षा भी प्रदान करते थे। हमारे देश में विभिन्न प्रकार के धर्मग्रंथों का यदि अध्ययन किया जाए तो सभी शायद इस बात को ज्यादा गहराई से समझ पाएँगे कि प्रकृति के संरक्षण को ही सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। आज हम सभी लोग धार्मिक प्रवृत्ति के तो हैं परंतु सच्चे धर्म से अज्ञान हैं। इस अज्ञानता के कारण ही हम प्रकृति का विनाश करते जा रहे हैं। भूमि पर जब फसलें ली जाती हैं तो फसलें जितनी भी प्रकार के से प्राप्त करती है, क्या हम संतुलित मात्रा में पुनः उसी भूमि में उन तत्वों को लौटाते हैं या नहीं? इसका उत्तर नहीं में ही आएगा। आज हमें सबसे पहले यह सोचना चाहिए कि हानिकारक कीटों को नियंत्रित करने के लिए हम अलग-अलग प्रकार के कीटनाशकों का उनमें से लगभग 67 कीटनाशक ऐसे हैं जिनको विदेशों में पूरी तरह से रोक लगा दी गई है लेकिन भारत में अभी भी इनका उपयोग बहुतायत से हो रहा है। तो क्या हम कभी भी ये नहीं सोच पाएँगे कि वाकई में इनके द्वारा होने वाले नुकसान के कारण ही विदेशों में इसे रोका गया है, तो हमारे देश में इस तरह के सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। नहीं तो आने वाले समय में हमें भयानक दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे। हमें भयानक दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे। इस मामले में हमें सिक्किम का अनुसरण करना चाहिये। वर्ष 2003 में सिक्किम के मुख्यमंत्री श्री पवन कुमार चामलिंग ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया कि सिक्किम राज्य में अब रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों की बिक्री नहीं होगी। वर्ष 2015 का लक्ष्य बनाया गया कि राज्य को वर्ष 2015 तक शत-प्रतिशत जैविक खेती से परिपूर्ण करना है। यह लक्ष्य राज्य ने अब हासिल कर लिया है। अब आप सोचिये कि क्या हम सभी मिलकर हमारे राज्य में भी इस तरह का बदलाव नहीं ला सकते? हमारे राज्य में सरकार कभी चाहे या न चाहे, वो रासायनिक उत्पादों पर रोक लगाए या न लगाए, हमें ही निर्णय लेना होगा क्योंकि अब बहुत हो चुका। एक तरह रासायनिक उत्पादों की असीमित मूल्यवृद्धि के कारण वैसे भी हमारी फसल उत्पादन की लागत बढ़ती जा रही है। यदि हम जैविक तकनीकों का प्रयोग करें तो पहले वर्ष से ही इन सभी प्रकार के खर्चों को कम से कम 50 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं। यदि लागत में हम कटौती करेंगे तो यह भी हमारा मुनाफा ही होगा। आज कई सारी कंपनियाँ जैविक खेती के आने वाले समय को देखते हुए इस क्षेत्र में आ चुकी हैं। बस अब आपको यह ध्यान रखना है कि आपके द्वारा लिया गया जैविक कीटनाशक वाकई में जैविक है या रासायनिक। क्योंकि आज हर चीज में मिलावट शुरू हो चुकी है। जैविक उत्पाद लेने के पूर्व कंपनी के बारे में पूरी जानकारी लीजिये। उनके लायसेंस की छानबीन कीजिये। यह जानना आपका हक है



मूंग उत्पादन की उन्नत तकनीक

भारत में मूंग (Moong) ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौषम की कम समय में पकने वाली अक मुख्य दलहनी फसल है| मूंग (Moong) का उपयोग मुख्य रूप से आहार में ...