Friday, January 1, 2016

जैविक खेती की जरूरत

जैविक खेती की जरूरत


नितेश पाटीदार (जसानी) 


सम्पूर्ण भारतवर्ष जैव विविधताओं से परिपूर्ण है। इसी जैव विविधता पर समस्त मानव जाति निर्भर करती है। पृथ्वी, मनुष्य एवं पर्यावरण के बीच दीर्घायु संबंधों की सोच को आधार बनाकर आज जैविक खेती की नींव रखी गई है। कार्बनिक पदार्थ, सूक्ष्मजीव, मित्र कीट एवं गोधन जैविक खेती के अभिन्न अंग हैं। ऐसे गरीब किसान जो अत्याधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल नहीं कर सकते, वे पारंपरिक जैविक तरीकों का इस्तेमाल करके ज्यादा लाभ प्राप्त कर सकते हैं।



भारत वर्ष का कृषि इतिहास "लगभग 4000 वर्ष पुराना है। यहाँ के किसान चार सहस्त्राब्दि के कृषि ज्ञान से परिपूर्ण किसान हैं। हमारे देश में पुरातन काल से ही पर्यावरण को ध्यान में रखकर खेती की जाती है। परन्तु हरित क्रांति के दौर में किसानों को ज्यादा उत्पादन एवं फसल सुरक्षा के नाम पर उन्हें रासायनिक उर्वरक एवं रासायनिक कीटनाशक दे दिए गए और इन उत्पादों के अनावश्यक एवं अंधाधुंध प्रयोग से हमारे पर्यावरण के लिए एक घातक संकट खड़ा हो गया है। पिछले 50 वर्षों में हमारी फसलों की गुणवत्ता एवं उत्पादन दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ने के साथ-साथ भूमि की उर्वरक क्षमता में भारी कमी आई है। इसलिए पुनः हमारे पर्यावरण को स्वस्थ बनाने के लिए जैविक खेती को एक क्रांति का रूप देना होगा।


जैविक खेती एक स्वावलंबी कृषि पद्धति है। इसमें किसान स्वयं ही अपने खेत एवं फसलों के लिए जैविक खाद एवं जैविक कीटनाशकों का निर्माण करके उपयोग करते हैंयह बाह्य उत्पादों के उपयोग पर आश्रित नहीं है तथा इससे पानी की बचत भी होती है। जैविक खेती की समस्त तकनीकें पूर्ण रूप से पर्यावरण हितैषी है। मिट्टी स्वयं एक जीवित अंश है क्योंकि मिट्टी में पाए जाने वाले समस्त सूक्ष्म जीव _कार्बनिक पदार्थों से स्वस्थ मृदा पर्यावरण का निर्माण होता है। अर्थात् स्वस्थ पर्यावरण में ही स्वस्थ फसलें ली जा सकती हैं। इस प्रकार प्रकृति के साथ समन्वय रखकर टिकाऊ फसल उत्पादन प्राप्त किया जाता है।



जैविक खेती में मुख्य रूप से हमें फसल चक्रण, फसल अवशेष प्रबन्धन, जैविक खाद निर्माण, जैविक कीटनाशी निर्माण, वनस्पति संरक्षण, जल संरक्षण, मृदा संरक्षण, पौध पोषण प्रबंधन, पौध सरक्षा प्रबंधन, बीज संरक्षण, गोवंश प्रबंधन, कृषि अभियांत्रिकी एवं जैविक प्रमाणीकरण के विषय में जानकारी लेकर फिर हमें अपने खेतों में प्रयोग करना चाहिए। इन समस्त प्रकार की तकनीकों का उपयोग करके हम कृषि वातावरण का स्वास्थ्य, जैव विविधता एवं मृदा के समस्त जैविक चक्रों का संरक्षण एवं पोषण करते हुए उत्पादन सुनिश्चित कर सकते हैं। अर्थात् प्रकृति के साथ जुड़कर खेती करना ही जैविक खेती है। इन समस्त सम्बंधों के सहयोग से ही जैविक खेती के आधार का निर्माण होता है।


सम्पूर्ण भारतवर्ष जैव विविधताओं से परिपूर्ण है। इसी जैव विविधता पर समस्त मानव जाति निर्भर करती है। पथ्वी, मनुष्य एवं पर्यावरण के बीच दीर्घाय संबंधों की सोच को आधार बनाकर आज जैविक खेती की नींव रखी गई है। कार्बनिक पदार्थ, सूक्ष्मजीव, मित्र कीट एवं गोधन जैविक खेती के अभिन्न अंग हैं। इस जैविक खेती का सबसे बड़ा सफल उदाहरण हमारे भारतवर्ष का एक राज्य सिक्किम है। भारत में सिक्किम को पूर्ण रूप से ऑर्गेनिक लैण्ड का दर्जा दिया जा चुका है। यहाँ के करीब 66000 किसान 1.83 लाख एकड़ जमीन पर सिर्फ जैविक खेती करते हैं। पूरे भारतवर्ष में लगभग 6.5 लाख किसान जैविक खेती करते हैं। ऐसे गरीब किसान जो अत्याधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल नहीं कर सकते, वे पारंपरिक जैविक तरीकों का इस्तेमाल करके ज्यादा लाभ प्राप्त कर सकते हैंl वर्तमान समय और भविष्य में भी किसानों के लिए जैविक खेती के क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं क्योंकि घरेलु बाजार के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी जैविक उत्पादों की भारी माँग है। विगत दो दशकों में विश्व समुदाय में खाद्य गुणवत्ता सुधारने के साथ ही पर्यावरण को स्वस्थ रखने हेतु भी जागरूकता बढ़ी है। अनेक किसानों एवं संस्थाओं ने भी जैविक खेती पूर्ण रूप से प्रमाणित करके समान रूप से उत्पादन प्राप्त किया है। इस विधा से पर्यावरण सुरक्षा के साथ ही संपूर्ण ग्रामीण विकास की एक नई स्वावलंबी प्रक्रिया प्रारंभ होगी। स्वावलंबी कृषि तकनीकों से ही किसान आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ बनेगा।



आज पूरे देश में कई राज्यों से किसानों की आत्महत्या की खबरें आती रहती हैं। इसका मुख्य कारण किसानों के द्वारा लिया जाने वाला कर्ज है। यह कर्ज है खाद, दवाई, बीज एवं कृषि वाहनों या उपकरणों का। यदि हमारी कृषि नीतियों को किसान की परिस्थितियों को देखते हुए नहीं बदला गया तो हमारा किसान कभी खुश नहीं रह पाएगा। यदि रासायनिक खेती से सभी का भला होता है, तो हमारे देश के किसान दुःखी क्यों हैं? पर्यावरण असंतुलित होता जा रहा है। जिसका सभी जीवधारियों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है तथ ग्लोबल वार्मिंग इसका एक ज्वलंत उदाहरण है।



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